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________________ (१६२) बीज भिलामल होई नही, कैसे जात सही समसेर समारी । थाइ मिल्यो जसराज कहें, नेम राजुल कुं रति लागें दुखारी ॥१॥ राजल राजकुमारी विचारि के संयम नाथ के हाथ गयो है । पंच समिति तीन गुपति धरी निज, चित में कर्म समूह दशो है ॥ राग द्वेष मोह माया नहें, उज्जवल केवल हान लयो है । दम्पति जाइ बसें शिव गेह में, नेह खरो जसराज कामो है ॥ १३ ॥ इति श्री नेमि राजिमती बारमासा समान । [अभय जैन प्रन्थालय] ( ३ ) नेमि बारह मासा । सवैया-११ । रचयिना-जिन हर्प। श्रादि पन की घनघोर घटा उनही, विद्युरो चमकत झलाहलि सी । विचि गाज अगाज अवाज करत सु, लागत मों विष वेलि जिसी । पपीया पीऊ पीउ रटत रयणा जु, दादर मोर वदै उलिसी । से श्रावण में यदु नेमि मिले, सुख होत कहै जसराज रिसी ॥ १ ॥ अन्त प्रगटे नम वादर प्रादर होत, धना धन पागम पाली मया है । काम की वेदन मोहि सतावै, श्राषाढ में नेमि वियोग दयौ है । राहुल संयम ले के मुगति, गई निज कंत मनाय लयो है । जोरि के हाथ कहै जसराज, नेमीसर साहिब सिद्ध जयो है ॥ १२ ॥ [अभय जैन ग्रन्थालय] ( ४ ) नेमि राजुल बारह मासा। पद-१४ । रचयिता-लक्ष्मीवल्लभ । राजीमती बारहमासियो राज कृत सवैया लिख्यते । श्रादि उमटी विकट धनघोर घटा चिहुँ पोरनि मोरनि सोर मचायो । चमकै दिविवामिनि यामनि कुमय मामिनि कुंपिंउ को संग मायो ।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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