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थासू मास आदि घाँसु, संपूरन पन्च कीनौ, बारतिक करिक, उदार वार ससि मैं । जोपै सह माषा मन्ध. सबद सुबोध याको, तो चिनु संप्रदाय ना तत्त्र वस में। यात शान लाम जानि, संतनि को वैन मानि, वात प्रन्थ लिख्यो, महा शान्त रस में ॥ १ ॥ खर तर गधनाथ विधामान मट्टारक जिन मक्ति सूरिजू.
के धरम राज धुर में। खेम साख माझि जिनपजू बैरागी कवि, शिष्य सुख बर्द्धन शिरोमनि सुघर में। ताको शिष्य दयासिंध जानि गणत्रंत मेरे, धरम पाचारिज विख्यात श्रुतधर में। ताकौ परसाद पाइ रूप चंद पानंद सौं, पुस्तक बनायो यहु सोनगिरी पुर मैं । मोदी थापि महाराज जाको सनमान दीन्हौं, फतेचंद पृथ्वीराज पुत्र नथमल के । फतेचंद जू के पुत्र जसरूप जगन्नाथ, गोतम गनधर मैं, धरै या शुम चाल को ता. जगन्नाथ जू के । धूभित्रै के हेतु हम, ब्यौरि के सुगम कीन्हें, वचन दयाल के, वाछत पटत अब पानंद सदा एक सै। सगि ताराचंद अरू रूपचंद बालके ॥ ३ ॥ देशी भाषाको कही, अरथ विपर्यय कीन ।।
ताको मिता दू कडू, सिद्ध साख हम दीन ॥ ४ ॥ लेखन पुस्तिका
___ नंद वन्दि नागेन्दु वरसरे विक्रमस्य च । पौषसितेतर पंचमी तिथी धरणीसुत्तवासरे ॥ श्रीशुद्धिदंतीपत्रने श्रीमति विजयसिंहास्य सुराज्ये । वृहत्खर नरगछे निखिलशास्त्रौष पारगमिनो महीयांसः श्रीक्षेमकीर्तिशालोद्भवाः पाठ