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( २६ ) दान शील तप भाव रासरचयिता-वृ.Cणदास, र.काल सं.१६६६
धादि
धं ....... " वर पुखवरखनी विमल बुद्धि परगाम । दान मील तप भाव का, कविजन जंपै रास ॥१ एक मे राजगृही, समो श्री वर्द्धमान । देवहि मिलिकै तहं किया, समो सरन मंडान वही बारह परवदा, श्राया अपने ठाऊ । वाद कर नह थाप मै, दान सील तप भाउ ।। दान कहै यो बडो, स्वामी श्री बर्द्धमान । मा बग्वान हम कर, एमी बोल्यो दान ॥
दान भील तप भावका, रामा पुगे निकोई । तिमके घरमै मदा ही, असौ नवनिधि होई ।।
गाथा
सोलह मई गुण हत्ताइ, मम्वत विक्रम राइ समए । मितपस्वि माघ मास गमा कवि क्रिमणदास उचरियं ॥ ७
कलमर3 -- दान उत्तम सील सुपवित्त तप देही सुद्ध करि मिले । भाव तप सर्व सोह..............."का कहो ईक ॥ इक सबै जगत मैं दान सील तप मावना चारे एक समान ।
किशनदास कविजन कहै, सुप्रसन्न श्री कर्द्धमान ॥ इति दान सील तप भावना का रासा संपूर्णम् । प्रति-गुटका पत्र २१६ से २८, पं० १३, अ० १८ । १८ वीं शताब्दि साइज शा४४
[अभय जैन ग्रन्थालय]