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________________ (१३६ ) ( ३० ) दिगफ्ट खंडन । पद्य १६२ । रचयितः-यश (विजय) श्रादि अथ अध्यात्म मत खंड । रागण ध्यान शुम ध्यान, दान विधि परम प्रकाशक । संघट मान प्रमान, धान जस मुगति अभ्यासक ॥ कुमत वृद तम कंद, चंद परिद्वन्द्व निकाशफ । कांचन मंद मकरंद, संत प्रानंद विकासक ॥ यश वचन सचिर गंभीर निजे, दिगपट कपट कुठार सम । जिन पर्वमान सोई बंदिये, विमल ज्योति पूरण परम ॥ १ ॥ हेमराज पाठे किये, बोल चौरासी फेरी । या विधि हम भाषा यचन ता ( को ) मति कियो श्रोरि ॥ ५ ॥ है दिगपट के वचन से, और दोष सत साख । केते काले लेडिये, भुजित दधि उर भाख ॥ ६ ॥ पंडित साची सरदह, मृरख मिथ्या रंग । केहनो सो प्राचार है, जन न तजे निज टग ॥ ६१ । सत्य वचन यो सहहै, करे सुजन को संग । वाचक जस कह सो लहै, मंगल रंग अभंग ।। ६२ ॥ इति दिगपट खंडन । लेखनकाल-१६ वीं शतारिद प्रति---पत्र ६ । पंक्ति १६ । अक्षर ४० । साइजx४| [-ममय जैन ग्रंथालय] (३१) द्रव्य प्रकाश । रचयिता-देवचन्द्र। रचनाकाल-सं. १७६७ मा. व. १३ । बीकानेर ।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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