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निन गगति पंथ स्पंदन मविजना गन्दन गन्दन सुबोध की सुमति एव कारन दुगति दुख वारण मविक जनतारन निवारन करोध को श्रीजिन समुद्र सामी मोई माची सिवगामी नगं सिरनामी जाकी वचन श्रबोध को ॥५॥
अथ ग्रंथ संपूरनं अाभोग कथनं - दोहरा - तन्य प्रबोध मुन उदधि ज्य, किन विधि लहीयै पार । यथा शक्ति कळु वरन यौ, निजमति के अनुसार {१७५|| गाथा प्रकर गए श्रौकरी, महा अर्थ की खानि | पढ़ श्रत धारिने दुरै, ते मम लम्प विज्ञान ||७६॥ वान बुद्धि सास नहीं, गाथा अरथ दुगम्य ।। तब भाषा कीनी भली, चतुरनि को चितरम्य ॥६॥ मंत्रित सतरह गै वग्ग, बीते ऊपरियोस । कातिक सित पंचमी गुगे, ग्रंथ न्यौ सजगीम ॥७७॥ श्री गड गर मैं भलो, मूरि सकन गुन जान । या जिन चन्द सूरी स्या, सुविहित मति धान ॥७॥ ताम मास सुविनय धरन, श्री जिन समुद्र सूरीस । कोनी सभ व रेत की जारि भग्वद सकवीश १७६ । पनि गल पंच पद भणम मा प्रधान । अंतिम मयफ. की याना मंगल म एन ।८.० }
सवथा
सकाने गुन विधान पंडित जी पधान बहु गण के विधान भूषन महित है। तलक प्रबोध की जो रचनाकरी मै हित ताहि तुम सोधियो त्रु प्रस्थ ग्रहत है। सवत रातहरी तामे रामे पानी एह गिरी दुर्घजैसलमी धम्म महत है। श्री जिनचंद पूरीम ? जिन मममीस माम् शध म्यान ईस वीनती कहत है ॥१॥
इति श्री तत्वधोध नाम नाटक सपूणम् श्री वेगढ़ गछाधीश भट्टारक श्री जिन समुद्र सूरिभिःकृतं सं०१७३० कार्तिक यांसित पंचम्यां गुरौ श्री जैसलमेरगढ महा दुम ।। महा नंद राज्ये श्री: ।। श्री श्रीः ।। कल्याण भूयात् ।।