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पत्र ६६, पंक्ति १२, अक्षर ४२, साइज १२४७ १. शेष अधिकारों में लक्ष्मीचंद्र नाम भी है।
(२५) तव प्रबोध नाटक।
श्रादि
।। ६० ।। नमः श्री प्रत्यूह व्यूह छिदे राग ललित दोहरा -
स्याद वाद बादी तिलक, जगगुरु जगदानन्द । चन्द सूरितै अधिक युति, 3 जिन सो अगिचन्द ॥१॥ मध्ये गुरु नाम प्रथमाईत वर्णन सं. ३१ सा. साद बाद मतता की, ज्ञान ध्यान शुद्ध ताकी. नव भेद घेद् वाको, नाही है इकत्व की । हरि हर इन्द चन्द, मुरा मुर नर नृन्द, मानी बिन जाने कौन, यात्रता पं. सत्य को । चीनीस अनेक जास, अतिमय को विलास, लोका लोक को पकाम, हामन अमत्व को । गोई अरिहत देव, श्री जिन समुद्र सेव, प्रणमि दिसा भेव, सुगी नव तत्व की ॥२॥
दोहा धार हनादिक चि पद, नायक प.च प्रमिए । पृथक भेद का वर्ण ही, सुनह सगुन गुन मिट ॥३॥
प्रथमाईन वर्णनं, सबैया ३१ साश्रष्ठ महा प्रानि हार्य गजति जिनेन्द्र राजा सुरासुर कोडि करजोडि सेवै द्वारजू तीन शाल प्रविसाल रूप्य स्वर्ण मणिमाता चिंहुदिशि मायुध प्रघर प्रतीहारजू ।। कंचन मव कमल ध्वनक्रमयुगन विमल गगन तल अमन विहारजू, श्रीजिन समुद्रसोई तीन लोक पति होई जय जय जय जिन जात्र अधारजू ।।४।।
सवैया ३१ सास्याद वाद मर्डन कुत्रादि वादि खंडण मिथ्यात को विहंष्ण जू दंन बोधको दोष को