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इन ही के कारन ते अन्य सान निधि भयो, पठत सुनत याके मिटत विभाय हैं । थाम अगिम को बखान्यो मग भाषा रचि, स्व रस रसिक गासौं राखे चित चाउ है ॥ ५२ ॥
मान समुद्र सुभाष सुभ, पदमागम सुख कंद ।
सज्जन सुनहु विवेक करि, पदति गुनत श्रानंद ॥ ५३ ॥ इति श्री ज्ञानार्णवं योग प्रदीपाधिकारे भइया श्री ताराचंद सुतभ्यर्थमया पंडित लब्धि विमल कृतौ भाषाया प्रारंभ पीठिका वर्णनं प्रथमो प्रकरणम् (१) अंत
वायुग मुनि ७ इंदु संवत् कुवार सास विजय दशभि वार मंगल उदारू है । दव जिन मानिक के पाट भए जिनचन्द अकबर साहि जाको कई सिरदारू है ॥ उवमा समराज कौल लाम भए ताके लबधि कीरत गति जगजस सारू है। . खबि रग पाठक हमारे उपगारी गुर तिनके सहाइ रच्यो वागम विचारू हैं ॥ ५७ ॥ तागचन्द उदो भये जैसे नत ताई रेने प्रतिपल साम्य वाटै जैसे बालचन्द है। वस्तु के विलोकन को यहै है तिलोकचन्द और चन्द्रभान यासौं दोऊ मतिमंद हैं । ५६न कषाय को वरफ़ न किया चाहे सम्यक सौ राचि मई या जहा नाही बंद है । कानसिंधु कारन है सम्यक की सद्भता को यहै हेतु जानि रच्यो ग्रंथ शुभ चंद है ॥ ५८ ॥ नगर फतेपुर मैं क्याम खाती कायम है सिरदार साहिब अलिफवा दीवान है । ताति राज काज भार ताराचंदजू को दीनो देश को दिवान किनी जान परधान है ॥ ता जैन बानी को श्रद्धान प्रमान ज्ञान दरशनवान दयावान प्रतीतवान श्रवधान है। इनही के कारन ते भाषा भयो झामसिंधु घागम को अग यामें ध्यान को विधान है ॥ ५६ ॥
इति श्रीमालान्धयं वदलिया गोत्रे परम पवित्र भईया श्रीवस्तुपाल मुन श्री ताराचद साभ्यर्थनया पंडिन लब्धि विमानगगि कृती ज्ञानार्णव भापायर्या योग योग प्रदीपाधिकार संपूर्णम ॥ संवत् १८२८ वर्षे श्री अश्विन मासे शुक्लपक्षे तिथी चतुर्दश्यां ॥ १४ । भीभवामरधिमायाम, लिग्विनं स्वामी रिषि शिवचद् गौश गंज मध्ये पठनाथ श्रात्मार्थ व परमार्थो ।।
(सं० १६५ आश्विन शुक्ला ६ गु० लि• श्रमीलाब श्रमा निवासी ग्राम पालय सूया दिल्ली सहर का यह शास्त्र बाकी दिल्लो ला. महावीर प्रसाद उर्फ नूरीमल की स्त्री ने भी मंदिरजी कृये सेठ में प्रदान किया।