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________________ (१३४ ) इन ही के कारन ते अन्य सान निधि भयो, पठत सुनत याके मिटत विभाय हैं । थाम अगिम को बखान्यो मग भाषा रचि, स्व रस रसिक गासौं राखे चित चाउ है ॥ ५२ ॥ मान समुद्र सुभाष सुभ, पदमागम सुख कंद । सज्जन सुनहु विवेक करि, पदति गुनत श्रानंद ॥ ५३ ॥ इति श्री ज्ञानार्णवं योग प्रदीपाधिकारे भइया श्री ताराचंद सुतभ्यर्थमया पंडित लब्धि विमल कृतौ भाषाया प्रारंभ पीठिका वर्णनं प्रथमो प्रकरणम् (१) अंत वायुग मुनि ७ इंदु संवत् कुवार सास विजय दशभि वार मंगल उदारू है । दव जिन मानिक के पाट भए जिनचन्द अकबर साहि जाको कई सिरदारू है ॥ उवमा समराज कौल लाम भए ताके लबधि कीरत गति जगजस सारू है। . खबि रग पाठक हमारे उपगारी गुर तिनके सहाइ रच्यो वागम विचारू हैं ॥ ५७ ॥ तागचन्द उदो भये जैसे नत ताई रेने प्रतिपल साम्य वाटै जैसे बालचन्द है। वस्तु के विलोकन को यहै है तिलोकचन्द और चन्द्रभान यासौं दोऊ मतिमंद हैं । ५६न कषाय को वरफ़ न किया चाहे सम्यक सौ राचि मई या जहा नाही बंद है । कानसिंधु कारन है सम्यक की सद्भता को यहै हेतु जानि रच्यो ग्रंथ शुभ चंद है ॥ ५८ ॥ नगर फतेपुर मैं क्याम खाती कायम है सिरदार साहिब अलिफवा दीवान है । ताति राज काज भार ताराचंदजू को दीनो देश को दिवान किनी जान परधान है ॥ ता जैन बानी को श्रद्धान प्रमान ज्ञान दरशनवान दयावान प्रतीतवान श्रवधान है। इनही के कारन ते भाषा भयो झामसिंधु घागम को अग यामें ध्यान को विधान है ॥ ५६ ॥ इति श्रीमालान्धयं वदलिया गोत्रे परम पवित्र भईया श्रीवस्तुपाल मुन श्री ताराचद साभ्यर्थनया पंडिन लब्धि विमानगगि कृती ज्ञानार्णव भापायर्या योग योग प्रदीपाधिकार संपूर्णम ॥ संवत् १८२८ वर्षे श्री अश्विन मासे शुक्लपक्षे तिथी चतुर्दश्यां ॥ १४ । भीभवामरधिमायाम, लिग्विनं स्वामी रिषि शिवचद् गौश गंज मध्ये पठनाथ श्रात्मार्थ व परमार्थो ।। (सं० १६५ आश्विन शुक्ला ६ गु० लि• श्रमीलाब श्रमा निवासी ग्राम पालय सूया दिल्ली सहर का यह शास्त्र बाकी दिल्लो ला. महावीर प्रसाद उर्फ नूरीमल की स्त्री ने भी मंदिरजी कृये सेठ में प्रदान किया।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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