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दिट श्रासन थिति चास जासु उज्जल जग कीरति ।
प्रातीहा गज अष्ट नष्ट गत रोग न पीरति ।। घजरामर एकल छल छग अनुपम धनमित शिव करन् । इंद्रादिक बंदित चरण युग जय जय जिन श्रशरन शरन ॥ १॥
दोहा शान रमा धन श्लेष हैं, वंदित परमानद । अजर अझै परमातमा, नमो देव जिनचंद ॥ २ ॥
कहि ही संत प्रमोद घर, यह ज्ञानार्णव ग्रन्थ । जग विया निग्रह कर, कोविद शिव को पंथ ॥ १३ ॥
पूर्वाचार्य स्तुनि में समतभद्र, देवनंदी, जिनमेन, प्रकारक का निर्देश है।
शान समुद्र अपार वय, मान नौका गति मंद । 4 2 ( सं १ ) वट नीको मिल्यो, घाचारज शुभचद ॥ ४७ ॥ ताके वचन विचारि के. कीने भाषा छंद । श्रातम लाभ निहारि भनि, प्राचारज लखमीचंद ॥ ४८ ॥ स.गुरू कृपा ते मे सुगम, पायो श्रागम पंथ ।। भविक बांध के काने. भाषा कीनी अथ || ४६ ॥
कुदलिया
गन परतर मब जग विदित, शुभ भापा जिनचंद । लधि ग पाल सगरू, गत जिन धर्म धनद ॥ रत जिनधर्म थनंद, नद मम बम विचारी । = शिष तावे. मए, विष चित्त शुभ जिन गुन धारी ॥ कुराल नारायणदास तास लघु मात लखमन ।
जानि भविक सुख न विदित्र जग सब खरतर गन ॥ ५० ॥ बदलिपा गोत वर करत वजीरी नित, स्वामि काम सावधान हियो परिचाऊ है । ताराचंद नाम वस्तपालजू को नंद हिरदै मैं जाके जिनवानी ठहराउ है ॥