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( २० ) जीव विचार माषा-रचयिता-बालमचंद । रचन. काल-संक १८१५, बैंमाख मुदि ५। मकसुदावाद । श्रादिअथ भाषा लिख्यते
चोपई तोन भुवन मे दोष समान । वंदु ) जिनवर धधमान । मन शुद्ध वंद गरु के पाय शुभ मति घे मुझ सरस्वति माय ॥ १ ॥ भाषा बंध गन् जीव (वि) नार। गुर सिद्धान्त तणे ग्रनसार । अन्नप बुद्धि के मम-झग हेत । माषा किन्ही बुद्धि ममेन ॥ २ ॥
समय सुदरजी मरव प्रसिद्ध । श्रासक रणजी पंडित वृद्ध । तास शि-य है कल्याण नंद । तर लय नंधव अालमचद ॥ ११ ॥ निणयहमाषा रची बाय । निजमति मापक युगति उपाग । बालक रयाल कियों में ग्रेट। सुगुरण सुकवि मति दीयो छह ।। १११ ।। बाम शशिवसुनद बखा १.५) श्रेसबार मांगा । साल क्षदि पचमी रविवार | भाषा बंध रच्यो जवचार ॥ ११२ ॥ साह सगालचंद सुगृण प्रवीन । श्री जिनधर्म माहें लयलीन । तिनके हंन करी यह जोडि । दिन दिन होन्यो मंगल कोडि || ११३ ॥ नगर नाम मकसूदाबाद ! दिन दिन सुख है धर्म प्रसाद ।
संघ चतुरविध कु जिण चंद । नित नित दीज्यो अधिक अानंद ॥ ११४ ।। इति श्री जोव विचार भाषा संपूर्णम
लेखनकाल-सुश्रावक पुन्य प्रभावक श्री जिनाज्ञा प्रतिपालक सासुग्वन गोत्रीय साहजी श्री सुगालचंदजी पठनार्थ । प्रति-गुटकाकार । पत्र-११ । पंक्ति २० । अक्षर १५ । साइज ६x६॥
[अभय जैन ग्रन्थालय] ( २१ ) जोगीरासो। जिनदास
आदि
श्रादि पुरुष जो श्रादिज गोतम, श्रादि जती बादि नायो । श्रादि पुरुष गुरु जोग पयास्यौ, जय २ जय जगनाथो ॥ १ ॥