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________________ {१८) कौंगण कौंण पातिस्याह देव कौन २ दईवान देवें । कौन कौंन महिनि देखे .......... ... जोधोरण राठी, राजा अजीतसिंघ देखे, बीकांण राजा सुजाणसिंध देवै । यांवर कछवाहा गजा जयसिंह देखें । अबिर कछवाहा राजा जयसिंह देोवै । जैसाण जादव रावल दुध सघ देखें । ए कैसे हैं, वडे सुविहान है,वड महिर्बान है, व सिरदार है,वटे वूमदार हैं ,वडे दातार है, जमी श्रासमान बीच संभू अवतार हैं । sa श्री पूज्य जिनसुखसूरी श्राइ पाट विराजव है । इंद्र से छजते है धर्म कथा कहित गाजते हैं । तो ऐस जैन के तखत बडे नेक वखत साहिब सुविहान भगवान से भगबान । परम कपाल भक्ति प्रतिपाल चौरासी म् राज उमरदराज ई जालम युग जुग कायम | वात को वात चोज का चोज । गुग्णा का गुण मौज की मौज । देसातु पास रहिया नो द्वागीर । चंद द्वावत कहिया इति मजलस द्वावेत जिनसुख सूरिजी री संपूर्ण । कीनी २० श्री गमविजय जी १७७२ करी। प्रति-इसके प्रारम्भ में जिनवल्लभ सूरि द्वावैत १ पीछे पंजाबी भाषा में मीह बम्लो छेद 17० रुपचन्दजी रचित) है । कुल पत्र ११, पंक्ति १५, अक्षर ३६ से ४० [ अभय जैन ग्रन्थालय]
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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