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________________ (१६) चंद चौपई समालोचना । पद्य-४१३ । रचयिता-ज्ञानसार रचना काल - सम्बत १८७७ चैत्र बदी-। आदि ए निश्च निश्नै करौ, लखि रचना को मांझ । छंद यत्नं कारै निपुण, नहीं मोहन कविराज ॥१॥ दोहा द विषम पद, कही तीन दस मात । मम में ग्यारह धरे, मंद गिरथे ख्यात ॥ २ ॥ मो तो पहिले ही पदै, मात रपी दो बार । अलंकार दुषगा लिख, लिग्वत चढत विस्तार ॥ ३ ॥ ना कवि की निन्दा करी, ना कछु राखी कान । कवि कृत कविता शास्त्र की, सम्मति लिखी सयान ॥ २ ॥ दोहा त्रिक दश घ्यार मो, प्रस्तावीक नवीन । खरतर भट्टारक गरौ, झान सार लिख दीन ।। ३ ॥ भय मय पवयणमाय सिंध, धानवाम लिख दीध । चत किसन दतिया दिने, संपूरण रस पीध ॥ ४ ॥ इति श्री चंद चरित्र सम्पूर्ण । संवन्नवत्यधिकान्यष्टादश-शतानि (१८८६) प्रमित मामोत्तम माम चैत्र कृष्णकादश्यां तिथो मार्तण्ड वारे श्रीमत्वहनखरतर गच्छे पं. आणंदविनय मुनिस्तच्छिध्य पं० लक्ष्मीधीर मुनिम्तस्य पठनार्थमिदं लि०। श्री। श्री। लूणकरणसर मध्ये ।। ( पत्र ८७ ) [ म्यान-सुमेरमलजी यति संग्रह,भीनासर ] ( १७ ) जपतिहुश्रण स्तोत्र भाषा । पता ४१ । रचयिता-क्षमा कल्याण । महिमापुरश्रादि परम पुरुष परमेशिता, परमानंद निधान । पुरसादाणी पास जिन, बंदु परम प्रधान ॥१॥
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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