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________________ महिमापुर मंडन जिनगया, मुविधि नाथ प्रभु के सुपसाय । श्री जिनचंद्र मरि निगज, धर्म राज्य जयवंत समाज ||३|| बंगदेश शोभित सुश्रीन, श्रोश वंश कातला गोन । सोमाचंद सत गृजरमल्ल, माता तनसुखराय निसन्म ॥४०॥ तिनके आग्रह मैं जुन कीन, जपतिहअग्ण की भाषा कीन । वाचक अमृत धर्म गनीस, सीस क्षमा कल्यारण जगीस ॥४॥ लेखनकाल-१६ वी शनादी । प्रति-पत्र २ [ स्थान-अभय जैन ग्रंथालय ] (१८) जिनलाभ सरि द्वायत । रचयिता-वम्ता( विनयभक्ति) आदि अथ पदावली सहित श्री जिनलाभ सूरिजी ग द्वायत लिखीजै छै वाचक विनयभक्ति जी री कही गाहा चौसर धवल धी सेवक धरणी धर, धुर सिर हर देवो धरी धर । धुना देव नमो धरणी धर, धरिजै कपा नजर धरणी धर ॥१॥ पहपायाल सुन्दरि पदमावती, पूरण मन बंछित पदमावती । पृथ्वी अनंत रूप पदमावती, प्रसन मीटि जोवी पदमावती ॥२॥ उल पामाल हुंता बहि यात्री, अम्हा सहाय करणा वहि भावा । इस मंत्र भागही प्रावी, श्राई माद दातां प्रात्रौ ॥३॥ वनिका भैसी पदमावती माई बरे बड़े सिद्ध सानै ध्याई । तारा के रूप बौद्ध सासन समाई । गौरी के रूप मित्र मत बालु नै गाई । जगत में कहानी हिमाचल की झाई । जाकी संगती काट्ट सो लखी न जाई । कोसिक मत मैं बना कहानी । सिवजू की पटरानी । सिब ही के देह में समानी। गाहत्री के रूप चतुरानन मुम्ब पंकज वमी। अपर के रूप चौद विधा में विकसी ।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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