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________________ श्रका अनादि अनंत न भव भय ने न्यारा । मृग्ग्व भाव न जान ही, मतन कृ 'याग ॥ ४ ॥ श्रा० ।। परमातम प्रतिबिंब मी, जिन मनि जाने । ते पृजित जिनगज क. अनभन रस मान ॥ ५ ॥ श्रा० ॥ अत गगधन्या मिरी नित नित प्रणामि चउचाग जिनपर । मवक जनमन वंचित पुरगा, संमति परतानि सुरनर ॥११॥ नि. || रिषम अजित सभव अभिनंदन, समति नाथ पदम प्रभु, सवाद चद्रप्रम विधि मीतन जिन,श्रेयांस श्रीवामुपृय त्रिम ॥२॥नि विमन अनंत धर्म शांति कुथुजिन, महिम मनिसुव्रत देवा । नाम नाम पाम महावीर मामी, त्रिभुवन करन ससेवा ॥३॥ नि, || सन ज्ञान चग्गा गगग करि सम, ए चोवीस तिथंकर । गाज श्री लिग्वमीवल्लभ प्रम नाम जपतभव भयहर ॥४॥ नि.।। इति श्री चतुर्विशति तीर्थ कराया मिति अध्यात्म युक्तानि पदानि । लं. मं० १४५५ लिखतं गांव पापामर मध्ये मा६ वदि ४ । प्रति- १ । पत्र ४ । पंक्ति १४ । अक्षर ४० । २। पत्र ५, मं० १७६०, फा०व० १ गु मुलताण मध्ये सुखराम वि० [अभय जैन ग्रंथालय (१४) चौबीमी । पद-२५ । रचयिता-जिनहर्प । आदि नाथ पद् - राग ललित । दंग्यो ऋषभ जिनंद तब तेरे पातिक दुरि गयो, ५थम जिनंद चन्द कलि सुर-तर कंद । सेबै पुर नर इंद अानन्द भयो ॥ १॥ दे० ॥ जाके महिमा कीरति सार प्रसिद्ध बढी संसार, फोऊ न लहत पार जगत्र नगी ।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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