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दशमा सर्वया लिखते छोड़ा हुआ है अत: अन्ध अधूरा ही मिला है।
प्रति
पत्र-२ । पंक्ति-१३ । अक्षर-४५ । साइज १०॥x ||
स्थान- अभय जैन ग्रन्थालय । (२१) मोहणोत प्रतापसिंह री पच्चीसी । पद्य २५ । कवि सिवचन्द ।
अथ ग्रन्थ प्रताप पचीमी प्रादि
कवित दोष जाने सबै वाधनन्द परवीन ।
ताते य नही को धरे, करि के कवित नवीन ॥ १ ॥ अथ असलील दोष लक्षणं ।
दोहा।
तीन भान असलील है, एक जुगपसा नाम ।
बीड पमंगल जानियें, ग्रंथ नमत गुन धाम ॥ २ ॥ अथ जुगपमा लक्षणं।
पढत ग्लान उपजै जहां, तहाँ जुगपमा जान । सबद विचार प्रवीन कवि, कवितन में जिनान ॥ ३ ॥
वाता
___यहाँ लिंग शब्द की ठौर रचि न कहयो चाहिये । लिंग ब्रीडा दूषन हो ।
कवित्त दोष न दिखाय मेकूगुन समझाय नेकू कविन रिझाय बेफू महावाक वानीसी । अमित उदारन कू रस री झवारन कू सूर सिरदारन कूः सिण्या की निसानीसी मन मगरू रन के कपन कारन के मान काट बेफू भई तिप्यन पानीसी ।