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________________ (११२) दशमा सर्वया लिखते छोड़ा हुआ है अत: अन्ध अधूरा ही मिला है। प्रति पत्र-२ । पंक्ति-१३ । अक्षर-४५ । साइज १०॥x || स्थान- अभय जैन ग्रन्थालय । (२१) मोहणोत प्रतापसिंह री पच्चीसी । पद्य २५ । कवि सिवचन्द । अथ ग्रन्थ प्रताप पचीमी प्रादि कवित दोष जाने सबै वाधनन्द परवीन । ताते य नही को धरे, करि के कवित नवीन ॥ १ ॥ अथ असलील दोष लक्षणं । दोहा। तीन भान असलील है, एक जुगपसा नाम । बीड पमंगल जानियें, ग्रंथ नमत गुन धाम ॥ २ ॥ अथ जुगपमा लक्षणं। पढत ग्लान उपजै जहां, तहाँ जुगपमा जान । सबद विचार प्रवीन कवि, कवितन में जिनान ॥ ३ ॥ वाता ___यहाँ लिंग शब्द की ठौर रचि न कहयो चाहिये । लिंग ब्रीडा दूषन हो । कवित्त दोष न दिखाय मेकूगुन समझाय नेकू कविन रिझाय बेफू महावाक वानीसी । अमित उदारन कू रस री झवारन कू सूर सिरदारन कूः सिण्या की निसानीसी मन मगरू रन के कपन कारन के मान काट बेफू भई तिप्यन पानीसी ।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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