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________________ दुरस दोहरे दोहरे, गुप्त वर्ष करि गाद ।।२।। सदगुरु श्रीध्रमसिंहज, पाठक गुणे प्रधान । कौतुक पच्चीसी कही, कवि वणाम काल ॥२७॥ इति कौतुक पच्चीमी समानः । ले० मं० १८२२ माधव शुक्ला पचभ्यां । श्री मेहता नगरे । प्रति-पत्र २, पंक्ति १६, अक्षर ४३ । १- दानसागर भंडार । २- अभय जैन ग्रन्थालय। ( १६) छिनाल पचीसी । पद्य २६ । रचयिता-लालचद श्रादि परमख देख अपण मुख गो, मारग जाती लटका जो । नामि मंडन्त जो बहिसि दिखावै तो बिनाल क्या होल बजावे ।। १ ।। एफ संमें इकतीया निहाली, हयन संग करनी छीनाली । तालचन्द श्राबर समझाये, तो बिनाल क्या टोल बनावें ॥ २६ ॥ प्रति पत्र १, जिमम गीदड़ग्रमो, मास्वमोलही श्रादि भी है। दानसागर भण्डार । २०. भागवत पच्चीसी. श्रादि प्रथमहि मंगलाचरन गास किया चदसूता मो सोनकादिक बाद रम भयों है। उत्तर में अवतार भेद व्यास को संताप नारद मिलाप निन पालाप उच्चयों है । भागवत करी शुकदेव की पठाय कुंतीविने माम स्तुति । रिनत जन्म भयों है । कलियुग दंड भगया में मुनि सराप ग्रह त्याग गंगा तट शुक सौ प्रश्न कों है ।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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