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(१०)
सकल बिमल गुन कलित ललित तन, मदन महिम बन दहन दहन सम | अमित सुमति पति दलित दृरित मति, निशित विरति रति रमन दमन दम । सधन विधन गन हग्न मधुर पनि, धरन धनि नल अमल अमम सम । जयतु जगति पति ऋषम ऋषम गति, कनक चरन दुति परम परम गम ||१||
दोहा श्रातम गुण झाता सुगन, निरगुण नाहि प्रवीन । जो शाता सो जगत में, कब होत न दीन ।। २ ।।
निज पर हित हेतें रची, वतीसी सुखकंद ।
जाके चिंतन से अधिक, प्रग, ज्ञानानंद ।। ३२ ।। पूग्णा ब्रह्म स्वरूप अनुपम, लोक त्रयो किव पाप निकंदन । सुन्दर रूप सुमंदिर मोहन, सोवन बान सरीर अनिन्दन । श्री जिनराज सदा मुस्व साज, सु भूपति रूप सिद्धारथ नन्दन । शुद्ध निरंजन देव पिछान, करत क्षमादिकल्याण सुवन्दन ||१||
स्थान- प्रतिलिपि अभय जैन प्रन्थालय । (१७) कुब्जा पच्चीसी । रचीयता -- मलूकचंद पादिअथ कुछता पच्चीमी लिख्यते ।
दोहा धनपति की संपति लहै, फनपति सीतम हो । चाहत नो धनपति भयो, नित गनपति मुल जोइ ।। १ ॥ जग में देवी देवता सबै करै अगवान । बेद पुराननि में मुनि, सर्वमयी भगवान ।। २ ।
अन्त
१- धन,
२- सीमति