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________________ (झ) अष्टोतरी, छत्तीसी, पच्चीसी आदि ( १ ) प्रस्ताविक अष्टोत्तरी । पद्य- ११२ । रचयिता- ज्ञानमार । रचनाकाल १८८१ श्राम । विक्रमपुर । आदि श्रामता परमात्मता, लक्षणता एक । यातें शुद्धातम नगे, सिद्ध नमन मुविवेकः || १ मना प्रवर्चनमाय 'ग, त्यो याकांश समास । संवत यासू माम पुर, विक्रम दम चौमास ||११|| इक सय नय दोहे सुगम, प्रस्ताविक नवान् । बस्तर मारक गर,ज्ञानसार पनि कान || १२|| इनि प्रस्ताविक अष्टोत्तरी संपूर्ण ।। [अभय जैन ग्रन्थालय] ( २ ) रंग बहतरी । म० ७१ रचयिता-जिनरंग मृरि । श्राहिअथरंग बहतरी लिग्यत । लोचन प्यारे पलक कों, कर दोऊं वल्लभ गान । जिनरंग सजन ते कहथा, और बात की बात ॥ १॥ भानी को मत फिकट सौ, जिनरंग सम्जन दाख । मन कपटी पर नारि को, गहरना की लाख ॥ २ ॥ अपनों अपनों क्या करै, अपनो नहि सरीर ।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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