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________________ ( E ) खारी खदरू ओर, जोबनेर में काज । अटल तेज रविड तनु, प्रतापसिंघ के राज । प्रतापसिंघ के राज श्रादि बिरि कही जे । मिती पोष सुदी तीज, बिहसपतिवार कही जे । ठारा सै तीस फही स्पोजी ये धारि । सांभरी की पैदासि होत, इबरु पर खारि ॥ पं०५ सं० १९७० वि० नागरीदास इश्कचमन और चत्र मुकट वात आदि भी इसमें है। [स्थान-अनूप संस्कृत पुस्तकालय ] ( ४ ) कका बत्तीसी । श्रादिअथ कका बत्तीसी लिख्यते । कका कहा कहुं किरतार कु. मेरी घरज सुनलेय । चतुरनार संदर कहै हीण पुरख मत देइ ॥ १॥ खखा खेलत २ में फिरी चेल कहा की साथ । अब दिन के भरूं वरस बराबर जात ॥ २ ॥ अन्त हहा हरसु वेमुख हुई करेन कोई मार । मुरख के पले पडी मोरन पूजी वार |॥ ३३ ॥ कका बतिसी एक ही ग्राम मास मझार । ससी श्रांक के योग में भानु शुक्ल गुरुवार ॥ ३४ ॥ इति श्री कका बत्तीसी संपूर्णम् ।। लेखन-संवत् १९२६ ग मिति भीगसर सुदि १२ दिने लिखितं श्री चंदनगर मध्ये ।। श्री ।। प्रति-गूटकाकार । पत्र-२। पंक्ति-२३ । अक्षर १८ के करीब। साइन॥x ७।।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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