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________________ ( १ ) अक्षर बत्तीसी ( बराबड़ी ;-कृष्ण लीला । पद्य-३८ । रचयिता-उछलाल । रचना काल-संवत १८०६ में पूर्व । प्रादि ॐ नमो मु सारदा, वरदानी माहा माया । अपने गुरु की कृपा , पूजू हरके पाय ॥ १ ॥ पूजहर के पाय, बनाय वगम्बड़ी । संति भगत मन भाय, मबद सभ्यां खंगे । पहें मुनी जन कोई महा सुख पाव है । 'हरी हरी हरदे बहही, गुण जो गाव हैं ॥ १ ॥ कका केवल गम कहु, कही सत गुरु बात । अवसर के पागपति, फिर पोर पछतात । अन्त मा कन्ट्र बराह धार श्रौतार गिणजै देवाज दान मले प्रेम संतन बसिधि में । पगा मई नर्मिध जेन हरनाकम मास्थौ वाबन बुध बल छल्यौ मा द्विजगज निदा” ॥ श्री रामचन्द मघवंम पनि, कि- नाम सोमा सरस । बुधा अवतार निकनं. कवि, लच्छलान कू देदवस ॥ २ ॥ इति श्री अक्षार बनोम कृष्ण लीला समान ।। बराखरी । लम्बन काल-संवत् १८०६ वर्ष मिनि जेठ यदि ५ दिने बुधवारे पं० हरचन्द स्तिग्यंत । श्री भूकरका मध्ये। प्रति-पत्र ३ । पंक्कि १६ । अत्तर ४५ । माइत १०४५ [ स्थान-अभय जैन ग्रन्थालय ] ( २ ) अक्षर बतीसी । रचयिता-अमरविजय । श्रादि ॐकार ग्राराधीये, जाम मंगल पंच । जिस गुण पारन पावही, वासत्र सेस बिरंच ॥१॥ १ पाठा दुख दरिद अध मिटै हरे हर गाइये ।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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