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________________ जा वानी के हनत ही, बाभ्यो परमानंद । मई सूरत कछु कहन कुं, बारहखड़ी के छंद ॥ ४ ॥ नं०५ से ३६ तक कुडलियों हैं। अन्त भारहखड़ी हित मु कही, लही गुनियन का रीस । दोहे तो चालीस है, छन्द कहे अत्तीस || ४१ ॥ प्रति-पत्र ३। [अभय जैन ग्रंथालय ] ( ३ ) बारहखड़ी । पद्य ७४ । रचयिता-दत्त । सं० १७३० जे० व० २ आदि संवत् सतरह से साठे समै, जेठ वदी तिथि दूज । रवि स्वाति बारहखड़ी, करि कालिका पूज ॥ १ ॥ करी कालिका पूज, भवानी धवलागढ की रानी । असुर निकंदन सिंध चटी, मईया तीन लोक में जानी ॥ सुर तेतासौ महादेव लौं, ब्रह्मा विष्णु बखानी । नमस्कार करि दत्त कहै, मोहि दीजो अागम वानी ॥ २ ॥ अन्त जंबू दीप याको कहै, गंग जमना परवाह । भरथ खेडा बलवड मु, नरपति नवरंग साह ॥ ७३ ॥ हरयाण मै मइल मैं, दिल्ली तखत गुलयारा । वार सहरि विचि नगरु लालपुर, जिति है रहन हमारा ॥ दयारामजी करी दास है, इगवड जन्म द्विज यारा । दानो वंस दत्त की चरण, पगनीयां पर बलहारा ॥ ७४ ।। इति बारहखड़ी समप्तं। सं० ले० संवत् १८५८ वर्षे फाल्गुन सुदी २ शनि दिने पूज किर पारिख लिखतु। वेरोवाल मध्ये। प्रति-पत्र २ [अभय जैन ग्रंथालय, बीकानेर )
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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