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________________ (६५) (१) अध्यात्म बारहखड़ी । पद्य ४३६ । रचयिता-चेतन । सं० १८. ३ जेठ सु०३ आदि करम भरम सब छोड़ के, धर्म ध्यान मन लाव । क्रोधादि प्यारो तजी, हो अविचल सुखपात्र ॥१॥ अध्यातम बारहम्बड़ी, पूरी भई सुजान । सब सेनालीस अंक के, चेतन भाख्यो ज्ञान । अंक अंक दोहे धरे, बार बार गुन खान । सब च्यार से बतीस है, बारहखड़ीके जान ॥ संवत् ठारे वेपने, सुकल तीज गुरुवार । जेठमास को झान यह, चेतन कियो विचार ॥ यामै जो कछु चूक है, ते बकसो अपराध । पंडित धरी सुधार के, तो गुण होई अगाध ॥ ज्ञान हीन जानी नहीं, मन में उठी तरंग । धरम ध्यान के कारगणे, चेतन रच सचंग ॥४२५॥ [ अभय जैन ग्रंथालय ] ( २ ) जैन बारहखड़ी । २० सूरत श्रादि प्रथम नमो अरिहंत को, नमो सिद्ध श्राचार । उपाध्याय सर्व साध कुं, नमतां पंच प्रकार ॥ भजन करो श्री श्रादि को, अंत नाम महावीर । तीर्थकर चौवीस कू', नमो ध्यान पर पीर ॥ २ ॥ तिन धुन सुंवानी खिरी, प्रगट मई संसार । नमस्कार ताकौ करौं, इकचित इकमन धार ॥ ३ ॥
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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