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________________ ( १६ ) हेमराज बावनी । पद्य-५७। रचयिया-लक्ष्मीवल्लभ (राज) आदि अन्त ( ६४ ) ऊँकार अपार अगम्म अनादि, अनंत महंत घरे मन में । ईह ध्यान समान न थान है ध्यान किये श्रघ कोटि कटै छिनमें । करता हरता भरता धरता, जगदीस है राज त्रिलोकन में । सब वेद के श्रादि विरंचि पढ़यौ, ऊँकार चढ्यौ धुरि बावन में ॥ १ ॥ X X अन्त ÷ श्रागम ज्योतिष वैदकु वेद जु, शास्त्र शब्द संगीत सुधावन । की ये करेंगे कहै है सु पंडित, आपने थापने नाउं रहावन || भारतीजू को श्रपार भंडार हैं, कौन समर्थ है पार के पावन । राज कह कर जोरि कै प्याइये, अक्षर ब्रह्म सरूप है बावन || ५७ || लेखनकाल- १८ वीं शताब्दी | प्रति- १ । पत्र ४ । पंक्ति १५ | अक्षर ५२ | साइज ६x४/ 1 [ स्थान- अभय जैन ग्रंथालय ] ( २० ) हंसराज बावनी । पच-५२ । रचयिता- हंसराज | श्रादि ऊँकार घरम ज्ञेय है न जाने, परतत मत मत छोहि मोहि गायो हैं । जाको भेद पात्रै स्यादवादी वादी और कहा जाने माने जाते थापा पर उरकायो है | दरत्र सरबत लोक हैं अनेक तो भी, पर जे प्रवान परि परि ठहरायो है । सो जिनराज राज राजा जाके पांय पूजे, परम पुनीत हंसराज मन मायो है ॥ १ ॥ ज्ञान को निधान सुविधान सूरि बर्द्धमान, सो विराजमान सूरि रत्नपाट उयू | परम प्रवीन मीन केतन नवीन जग, साधु गुण धारी अपहारी कलिकाट ज्यू । ताको प्रसाद पाय हंसराज उपजाय, बावन कवित्त मनिपोये गुनपाट व्यू | ate विचार सार जाको बुध अब धारि, डोले न संसार खोले करम कपाट ज्यू ॥ ५२ ॥ विशेष- ३ - इसका नाम ज्ञान बावनी भी है। [ स्थान-जयचंन्द्रजी भंडार ]
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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