SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १ ) पंत घिर भई शुद्धि अनुभूति की, ग्यान भोग मोगी भयौ । अनुभाग बंध निड भागते, माग राग दारिद गयौ ॥१७॥ इति बारह भावना कृता मोहनदास सिरीमाल कृति संपूर्णम् ॥ प्रति-गुटकाकार । पत्र-१-८८ से १५ पं० १७, अक्षर २६ । [अभय जैन प्रन्थालय ] ( १४ ) बावनी। पद्य-५४ । रचयिता-जटमल। . आदि ॐ ॐकार अपेही श्रापे दिगर न कोई दुजा, जो नर बाबर गा सम तारा, अजय बनाइ सचूजा । वजै वाउ अावाज इलाही, जटमल समझण मूजा, श्राखण जोगा वचन न ए है, समझ्या अमरत कूजा ॥१॥ अन्त लंघण लरक करै धरि लाल्या, पढि पदि लोक सुणावे । नागा होइ नगर सब दूं है, अंग विभूति वणाझे । जां जो ग्यान न दीपा अंदरि, ताकुंभ नजरि न श्रावै । जटमल सफल कमाई मस्मा, शान समेत कमावै ॥५३॥ हाल स्वराति मैं दा खा सा, जो नर होवई रहित । क्या होया जेधीषा कवीसर, टाटी वांग कहिता । धाप न सूग लोक लड़ा, माम न मूरख लहता । जटमल साहब मो लहसी, कहत रहत हुह सहिता ॥५४॥ इति जटमल कृत बावन्नी संपूर्ण । श्रीरस्तु लेखक पाठकयो । श्री। लेखन काल-संवत् १७३३ वर्षे भाद्रषा सुदि ६ गुरुवार सवाई जुगप्रधान भट्टारक श्री मच्छी जिनचंन्द्र सूरि राजानां महोपाध्याय श्री श्री सुमति शेखर गणि मखीनांमंते वसी वाचनार्थ श्री ५ चरित्र विजय गणि पंडित महिमा कुशल गणि पंडित रन विमल मुनि पंडित महिमा विमल सहितेन चतुर्मासी चक्र । एक्की प्रामे लिखितं महिमा कुशल गणि जती ॥ दो० रंगापठनार्थ
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy