SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १० ) आदि धूल साल देखें मूल सालन नहित उर, मान खम देखे मान जाइ महा मानी कौ । कोई के निकट गई कोटिक कलेस कटे, मेरे परताप परताप जिन वानी को ॥ बेदी के दिलों के श्राप वेदी पर बेदी होइ, निवेद पद पावै याते है कहानी को । बाजै देव बाजै सुनि होंहि रिषि राज मुनि, बाजै पावै राजि जिन राजी राजधानी को ॥ १ ॥ X अन्त जैनी को मन जैन में, जैनी के उरझाए । सो मन सों मन को भयौ, टरै न टारयो जाइ ।। टरै न टारयो पाइ, अपने रस रसिया । चंचल चाल मिटाइ ग्यांन सुख सागर बसिया । सुपर भेद, को खेद, दुहत ता कारज फीकौ । एकी भाव सुभाव, मिल्यौ मनुवां जैनी को ॥ ४३ ॥ इति कवित्त प्रस्तावी कवि मोहनदास सिरीमाल कृति समाप्तम् ! विशेप-ये पद्य अ, आ पर वों पर नहीं, पर फुटकर, आध्यात्मिक ४३ पद्य ही हैं। इसके बाद इस ही के रचित बारह भावना लिखित है दोहरा प्रथम अथिर असरन जगत, एक पान असुमान । श्राश्रय सेवर निर्जरा, लोक बोध' दुर्लमान १२ एई पारह मावना, कथे नाम सामान || अम कछु विवरन सौ कही, को उप सम परिमान ॥ २ ॥
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy