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________________ (१२ ) प्रति-पत्र ८ । पंक्ति । अक्षर ३५। साइज १०x४॥ [स्थान-अभय जैन ग्रंथालय] ( १५ ) बावनी । रचियता-सुन्दरदास ( वगारस ) । वणारम सुन्दरदास कृत बावना लिख्यते । श्रादि ॐकार अपार संसार श्राधार है, द्वेक्षर तंत संता सुख धामो । ब्रह्मा कर जाकी चौमुख क्रीत, उमापति श्रीपति हुं अभिरामी । मंत्र में जंत्र में याग योगारम्भ, जाप अजपा को अन्तरजामो । सुंदर वेद पुराण को जात है, तानै नमु नित को सिरनामी ॥१॥ २६ वां पद्य लिखते छोड़ दिया गया-अपूर्ण । प्रति-पत्र ३ । पंक्ति १५ । अक्षर ३७ साइज-१०४४।। [ स्थान-अभय जैन प्रन्थालय ] ( १६ ) लघु ब्रह्म बावनी । पद्य ५४ । रचयिता-ब्राम रूप ( चन्द ) आदिॐकार है अपार पारावार को न पावे, कछुगने सार पावै जाइ ना ध्यावेगी । गुगण वय उपजत विनसत थिर रहै, मिश्रित सुमाव माही सुद्ध कसे श्रावेगी । श्राम अगोचर अनादि अादि जाकी नहीं, असौ भेद वचन विलास कैसे पावेगी । नय विवहार रूप भामै है अनंद भेद, ब्रह्मा रूप निश्चै श्रेक अंक द्रव्य थावेगो ॥ १ ॥ अन्त लिंगाधार सार पक्ष कवेतांबर कम्यो दान, धार विवहार स्यादवाद शुद्ध ब्रह्म की । ताहीमें प्रगट भयो,पासचन्द मूरि जयो,थाप्यो पासचन्द गच्छ श्रास जिन धर्म की । तिहुनमें म.चित्रंत साधक अनुपचन्द, साध सुसबेगधारी शक्ति सुख शर्म की । जिनकी महंत कीर्ति ताही को निकटवर्ती, शिष्य ब्रह्मरूप बूझो रीति ब्रह्म कर्म को ॥ ५४ ॥ प्रति-प्रतिलिपि [अभय जैन ग्रन्थालय } (१७) सबैया बावनी। पथ-५२ । रचयिता-चिदानन्द । रचनाकाल१६०५ लगभग।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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