SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( E ) मेरी मति हीन तातें कीन्हो बाल व्याल इहु, धपनी बुद्धि ते सुधार तुम दीजियी । पौन के स्वमाव ते प्रसिद्ध कोज्यौ ठौर ठौर, पन्नग स्वमाव घेक चित्त में मुणोजियो । बालि के स्वभावतें सुगंध लीज्यो घरथ की, हंसके स्वभाव होके गुनको प्रहीजियो ॥ ५२ ॥ [स्थान-अभय जैन प्रन्थालय ] (१२ ) बावनी। पढ़ा ५४ मान । श्रथ मानकृत बावनी लिख्यते । छरपय छन्द ॥ आदि णमा देव अरिहंत, सिद्ध सरूप पयासण । णमा साधु गुरु चरण, परम पंथहि दरसावगा ॥ णमो धरम दस भेद, श्रादि उत्तम खमयुत्तौ । कर जोडिवि अनुभवै, साध मन राज पवितौ ।। हो जीव अनंतो काल तुव,टिप्प जाण धण हुव किरण । इम परम तत्व मन रहसि करि, हो बाद भी भौ सरण ।। सदा काल सु पत्रित्त, एह बावनि मन रंजय । कछु पापण कछु परह, करि बुधि दर्पण मंजणा ॥ ना कछु कीरति हेतु न, कछु धन पार निवंचन । यथा सकति मति मंडि, रची पद पद रस रंचन ॥ मम हमउ मित्त कारण लहिवि, यदि यह अर्थ निथिया । धर्म सनेहु मन मांहि धरि , मान तगा गुण गुधिया ॥५४॥ इति मान कृत बावनी। प्रति-गुटका। मं० १७०४ लि० पत्र ८६ मे १४ पं० २१, अतर २४ [ अभय जैन ग्रन्थालय ] (१३) बावनी । मोहनदास श्रीमाल। अथ बावनी मोहनदास कृत लिख्यते । सबईया ३१ ।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy