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(ज) बावनी बारखडी व अक्षर बत्तीसी साहित्य
( १ ) अन्यौक्ति-बावनी । पय-६२ । रचयिता-विनय यत्ति । मादि
ॐकार वर्गामेद, पायो तिन पागी सब, याकू' जो न पायौ, तोलु कहाँ और पायी है । अंग षट वेद चार, विद्या पार वारही मैं, जहाँ तहां पंडितन, याको जम गायो है ॥ नहीं जाकी श्रादि यात, भयो सनबीर श्रादि, जे हैं बुद्धिमान वान , अति ही सुहायो है। मुम्बको करण हार, विश्व विश्व वशीकार, सबहानै टोरी, याही कू बताया है ॥ १ ॥
ग्यरतरे गए भूरि, भाग्य जिनभद्र मरि, भये गगज बाकी, साखा विस्तार मै ॥ पाठक प्रवीन नगमन्दर, मुगुरुजू के, शिभ्य सावधान सुद्ध, साधके प्रचार मैं ॥ वाचक प्रधान भक्ति-भद्र गा विद्यमान, पाइ के प्रसाद वाकी, कपा अनुसार मैं ॥ भावन करण श्रादि, दे दे विनैभक्ति कवि, करियह युक्ति, नाना भाव के विचारमैं ॥ ६१॥ महाकविराज की बनाई, रीति पाई धुरि, प्याई माई पावती, म्या नकी जगावनी ।