________________
(
७७ )
नाथस्य प्रमिते पंचमारके स्य बन चंद्राश्वि वार्षियां, भविष्यति कलोयुगे ॥ २२ ॥ प्रसिद्धोयं ममाख्यातः, समाचार्यत्रवर्तते । स्वयं सर्वेषु गफलेषु, झातव्यो ज्ञान संग्रहात् । २३ । पट्टे श्री जिनचंद्रस्य, सूरेः श्री विजयीगुरुः । तत्प्रसादात कृता पूर्णा, श्री जिनाध्यादि सूरिया ॥२४॥ वाच्यमाना पठ्यमाना, श्रयमाणारुचहन्निशंक्षमारोग्याय कल्याण, प्रदा भवतु सर्वदा ॥ २ ॥ श्री सर्वार्थ सिध्यागा मणिमाला महोत्तमाया-- घच्च शासनं जैनं, तावरुवनंदताकिचरं ॥२६॥ मागमेष्वोधिष्टाता, तज्ञाश्रदेवता । न्यूनाधिकमिहा या तृतमम्व महेश्वरि ।। २७ ॥ सचमगलमंगल्यं ॥२८॥ मंगल सर्व भूतानां, मंधानां मंगल मदा मिंगल सव्व लोकाना,भूयात्सर्वत्र मंगल । १ सर्व मं० २ मंगलं म० ३ शिवम ॥ १ ॥ मंगल लेखक म्यापि, पाठक स्यापि मगलं मंगले शुभंमवतुकल्यागा, कल्यागा लेखक मालिका । अन्य प्राणिनां पाठकानांच, श्री जिनेश प्रभाषतः।६।
( ५ ) भन हरि शतक त्रय पद्यानुवाद । + चयिता-विनयलाभ ।
१ नीति शतक पद्यानुवाद -प] १८२ श्रादि
जाहि कु राखत ही मन में नित, सो तिय मोमौं रहै विरची । वा जिन को नित ध्यान धरै, तिन तो पुनि और सो रास रची। हमसौं नित चाह घरै कोई और, तौ विरहानल में इनकी । विग ताहि कु, ताक, मदनक, मोकु, इते पर बात कछु न वची ॥ १ ॥
अन्त
प्रथम शतक यह नीति के, विनय लाभ सम वैन । माषा करि गुन वरणियौ, सर वानी न ॥ २ ॥ नीति पंथ धर सत्त मग, दाना यानी और । पाम दयाल कपाल के, गुन बरणे इरिठौर ॥ ३ ॥
२ अंगार शतक भाषा । पग १०३ ।
आदि
मंभु के गोश में चंद्र कला, कलिका किधौं दोपह की धुति निर्मल । लोल पतंग दहयौ किधी काम, लम सुदसा सुम्बकी बू महाबल ।