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________________ ६६] त्रियष्टि शलाका पुज्य-चरित्रः पर्व १. मग १. - क्रिया हुई। ये लड़कियाँ गाँवक्र शूकर की तरह प्रकृतिसे बहुन खानवाली, बदनरत और दुनिया में निंदा पानवाली हुई। उसके बाद भी उसकी बीको गर्म रहा । कहा है "प्रायेण हि दरिद्राणां शीघ्रगर्भभृतः स्त्रियः ।" [प्रायः दरिद्रीक बरही गर्भधारण करनेवाली त्रियाँ होती है1] उस समय नागिल मनमें सोचने लगा, 'यह मेरे किस कर्मका फल है कि में मनुष्यलोकमें रहता हुया भी नरकलोकका दुःख सह रहा हूँ। मेरे माथ जन्मी हुई और निसका प्रतिकार होना असंभव है एसी इस दरिद्रतानं मुझे इस तरह खोखला कर डाला है जिस नरह दीमक पड़को खाकर खोखला कर देती है। अन्यन्न अलक्ष्मी दरिद्रता) की तरह, पूर्वजन्मकी वैरिनाकी नरह, मर्निमान अशुभदनगांकी तरह इन कन्यायान मुमदुःन्य दिया है। यदि इमवार भी लड़कीही जन्मगी तो में इस कुटुंबका त्याग कर परदेश चला जाऊँगा । (५२-५३७) बह इसी तरहकी बात सोचा करता था। एक दिन उसन सुना कि उसकी बीन कन्याको जन्म दिया है। यह बात उसके कानमें मुहली चुमी । नत्र वह अपने परिवारको छोड़कर इसी तरह चला गया जैसे अधम बल भारको छोड़कर चला जाना है (भाग जाता है। उसकी बीको पनिक चले जानकी बात प्रसववदनाकं साथ इसी नरह दुःन्य दनवाली हुई, जिस तरह घात्रपर नमक होता है। दुन्विनी नागान कन्याका कोई नाम नहीं गया, इसलिए लोग से निनामिका कहकर पुकारने लगे। 'नागाने उसका अच्छी नह पालन पोषण नहीं किया। तो मी 'बद्द वाला दिन बदिन उड़ने लगी। कहा है-
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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