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________________ ६] निषष्टि शलाका पुरुष-चस्त्रि: पर्व २. मर्ग६. सूक्ष्म काययोगमें रहते हुए बाहर मनोयोग और वचनयोगको मी रोका। फिर मूक्ष्म मनोयोग और वचनयोगमें स्थित होकर मुन्ननिय नामक शुक्लन्यानच तीमग पाया प्राप्त किया। पश्चात शुक्लब्यानले चौधे पाये, शैतशीकरम, मात्र पाँच नवु अनर चारण हो मुन्न इनने समय तक रहे। वहाँ शेष कमदय हुए और अतंन चतुष्टय सिइया । इससे वे परमास्मा प्रमुऋनुगतिमें लोकायको प्राप्त हुए-मोजम गए। (६०१-६५२) प्रमु कौमारावस्या अठारह लान्त्र पूर्व, राज्य स्थितिमें एक पूर्वाग सहिन निप्पन लान्त्र पूर्व, छमस्यावन्यामें बारह बरस, और केवलबानावस्था में एक पूर्वाग और बारह वयं कम लन पूर्व रहे । सब मिलाकर बहतर लान्त्र पूर्वकी श्रायु मोगर ऋषमप्रमुळे निवागमें पचास लाख करोड़ सागरोपमके बाद अजितनाय प्रभु मोन गए। उन माय दुसरं एक हजार मुनि मी-जिनने पादपोपगमन अनशन वन ग्रहण क्रिया या केवल । झान प्राप्त कर, नीनों योगांको रोक, मोनपढ़ पाया मगर मुनि-, ने भी, केवली समुद्यात करनगमरमें अनुपी' की तरह, स्वामी प्रान किए हुए पदको प्रान क्रिया यानी मोन गए। उमममय प्रमुक मोचल्याएको, कमी छन्त्रका मुंह नहीं देवनंबान नारकियाँको मी, नयनर लिए मुत्र हुश्रा। फिर शोकमाहित इंद्रन दिव्यजनमें ज्वानी अंगको स्नान करावां और गोगीर्य चंदन के रससे उसपर तप किया। इसी -पीट, चननवादा।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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