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________________ श्री अजितनाथ चरित्र - [ ७६७ 1 तरह उसे हंसों के चित्रवाले वस्त्र पहनाएं और विचित्र दिव्य भूप से प्रभुके शरीरका श्रंगार किया । देवने दूसरे मुनियोंके शरीरों को स्नान, अंगराग, नेपथ्य' और आच्छादन किया। फिर इंद्र स्वामी के शरीर को शिविकामें रखकर गोशीपचंदनकी काष्ठमय चितामें ले गया । देवता मुनियों के शरीरोंको, दूसरी शिबिका में रखकर, गोशीपचंदनके काष्ठकी रची हुई दूसरी चितापर ले गए। अग्निकुमार देवने चितामें आग पैदा की, वायुकुमार देवने श्रागको अधिक भड़काया और इंद्रकी आज्ञासे अनेक देवताओं ने सैकड़ों भार कपूर व कस्तूरी और सैफड़ों घड़े घी चिताओं में डाले । अस्थिके सिवा जय प्रभुकी सब धातुएँ जल गई तब मेघकुमार देवोंने जल वरसाकर चिताओं को शांत किया । प्रभुकी ऊपरकी, दाहिनी और वाई दोनों डाढ़ें शक्र और ईशानेंद्र ग्रहण की और नीचेकी दोनों डाढ़े चमर और बलि इंद्रने ग्रहण कीं । दूसरे इंद्रोंने प्रभुके दाँत ग्रहण किए और देवोंने भक्तिसे दूसरी अस्थियाँ लीं। दूसरे स्तूप- रचना ' वगैरहके जो काम वहाँ करने थे उन्हें विधिके अनुसार करके, इंद्रोंने देवताओं सहित, नंदीश्वर द्वीप जाकर बड़े ठाट-बाटके 'साथ, शाश्वत श्रहंतोंका श्रष्टाहिका उत्सव किया। फिर सभी देवेंद्र अपने अपने स्थानोंपर गए। वहाँ उनने अपनी अपनी सुधर्मा नामकी सभाओं के मध्य भागके, माणवक स्तंभोंमें, वज्ञमय गोलाकार डिब्बों में प्रभुकी डाढ़े रखीं और वे उनकी, शाश्वत प्रतिमाओं की तरह, उत्तम गंध, धूप और पुष्पोंसे, १ - नेपथ्य करना वस्त्राभूषण पहनाना । २–ग्राट हजार तोलेका एक भार ।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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