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________________ श्री अजितनाथ चरित्र [७६५ जैसे दुर्दिनके चीतनेसे सूर्य उदय होता है । ( ६५६-६६४) - केवलज्ञान उत्पन्न होने के समयसे पृथ्वीपर विहार करते हुए अजितनाथ स्वामीके पचानवे गणधर, एक लाख मुनि, तीन लाख तीस हजार साध्वियाँ, साढ़े तीन सौ चौदह पूर्वधर, एक हजार चार सौ मनःपर्ययज्ञानी, नौ हजार चार सौ अवधिज्ञानी, बाइस हजार केवली, बारह हजार चौरासी वादी, वीस हजार चार सौ वैक्रियलब्धिवाले, दो लाख अठानवे हजार श्रावक और पाँच लाख पैंतालीस हजार श्राविकाएँ-इतना परि. वार हुआ। (६६५-६७०) दीक्षाकल्याणकसे एक पूर्वाग कम एक लाख पूर्व बीतनेपर अपना निर्वाण-समय निकट जान प्रभु संमेद शिखरपर गए। उनकी बहत्तर लाख पूर्वकी आयु समाप्त हुई, तब उन्होंने एक हजार श्रमणोंके साथ पादपोपगमन अनशन व्रत ग्रहण किया। उस समय सभी इंद्रोंके आसन पवनसे हिलाए हुए उद्यानके , वृक्षोंकी शाखाओंकी तरह हिल उठे। उन्होंने अवधिज्ञानसे प्रभुके निर्वाणका समयजाना। इससे वे भीसमेदशिखरपर्वतपर आए । वहाँ उन्होंने देवताओं सहित प्रभुको प्रदक्षिणा दी और 'शिष्यकी तरह सेवा करते हुए वे पासमें बैठे। जब पादपोपगमन अनशनका एक महीना वीता तव चैत सुदी ५ के दिन, चंद्रमा मार्गशीर्ष नक्षत्रमें आया उस समय, पर्यकासनमें विराजमान प्रभु बादरकाययोगरूप रथमें बैठे थे और रथमें जुड़े हुए दो घोड़ोंकी सरह बादर मनोयोग और वचनयोग रहे थे। उन्होंने सूक्ष्म काययोगमें रहकर, दीपकसे जैसे अंधकारका समूह सकता है वैसेही, बादर काययोगका रोध किया और
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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