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________________ - श्री अजितनाथ-चरित्र [ ७८७ अंग तथा मगधदेशके उत्तरमें होकर, बवंडर जैसे तृणको उड़ाता है वैसे मार्गमें आती हुई नदियोंको खींचनेवाली उस नदीको ले जाकर उसने पूर्व समुद्रमें उतारा। तबसे वह स्थान गंगासागरके नामसे प्रसिद्ध हुआ। और भगीरथने खींचकर समुद्रमें डाला इससे गंगा भगीरथीके नामसे भी पहचानी जाने लगी। मार्गमें गंगाके चलनेसे जहाँ जहाँ नागोंके घर टूट जाते थे वहाँ वहाँ भगीरथ नागदेवोंको बलिदान चढ़ाता था। जले हुए सगरपुत्रोंकी अस्थियोंको गंगाके प्रवाहने पूर्व सागरमें पहुंचाया, यह देखकर भगीरथने विचार किया, “यह बहुत अच्छा हुआ कि मेरे पिता. की और काकाओंकी अस्थियोंको गंगाने समुद्रमें ले जा डाला। यदि ऐसा न होता तो ये अस्थियाँ गीध आदि पक्षियोंकी चोंचों और पंजोंमें जाकर, पवनके द्वारा उड़ाए हुए फूलोंकी तरह, न मालूम किस अपवित्र स्थानमें गिरती।" वह यह सोच रहा था तब जलकी आफतसे बचे हुए लोगोंने 'तुम लोकरंजक हो !(तुम लोगोंके कल्याणकर्ता हो!) यों कह कह कर बहुत देर तक उसकी प्रशंसा की। उस समय उसने अपने पितरोंकी अस्थियाँ जलमें डाली थीं इसलिए लोग अवतक भी मृतककी अस्थियोंको जलमें डालते हैं। कारण ......"सोऽध्वा यो महदाश्रितः।" [महापुरुष जो प्रवृत्ति करते हैं, वही लोगोंके लिए माग होती है।) (५७१-५८२) . भगीरथ उस स्थानसे रथमें बैठकर वापस लौटा। अपने रथकी चालसे काँसीके तालकी तरह, पृथ्वीसे शब्द कराता, जब वह चला आ रहा था तव, रस्तेमें कल्पवृक्षके समान स्थिर
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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