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________________ ___७८८ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग ६. खड़े हुए एक केवली भगवानको उसने देखा । उन्हें देखकर वह आनंदपूर्ण हृदयके साथ अपने रथसे, इस तरह नीचे उतरा जिस तरह उदयगिरिसे सूर्य उतरता है या आकाशसे गरुद्ध उतरता है। उस चतुर और भक्त भगीरथने, पास पहुंचतेही भक्ति सहित उन केवली भगवानकी वंदना की और तीन प्रदक्षिणा दी। पश्चात फिरसे उसने बंदना कर, योग्य स्थानपर बैठ, पूछा, "हे भगवन ! मेरे पिता और काका किस कर्मके कारण एक साथ (ललकर) मर" त्रिकालकी बातें जाननेवाले और करुणारसके सागर वे केवली भगवान मधुरवाणीमें इस तरह कहने लगे, "हे राजपुत्र ! बहुत लक्ष्मीवाले, मानो कुवेरकी लक्ष्मीके वे आश्रय हों ऐसे, पावकोंसे पूर्ण एक संघ पहले तीर्थयात्राके लिए निकला था। संध्याको वह संघ, मार्गसे थोड़ी दूर पासहीम एक गाँव देखकर उसमें गया। वह रातको किसी कुम्हारके घरके पास उतरा। उस धनवान संघको देखकर गाँवके सभी लोग खुश हुए और धनुप व तलवारें लेकर लूटनेको तैयार हो गए। मगर पापका भय रखनेवाले उस कुम्हारने खुशामद भरे और अमृत के समान हितकारी वचन कहकर गाँवके लोगोंको इस कामसे रोका । उस कुम्हारके आग्रहसे गाँवके लोगोंने संघको इसी तरह छोड़ दिया जिस तरह मिला हुआ पात्र छोड़ देते हैं। उस गाँवके सभी लोग चोर थे। इस लिए वहाँके रानाने एक बार उस गाँवको इसी तरह जला दिया जिस तरह पर-राज्यके (शत्रुके) गाँवको जला देते हैं। उस दिन वह कुम्हार किसीके बुलानेसे दूसरे गाँव गया हुआ था, इसलिए उस आगसे वह अकेलाही बच गया। कहा है कि
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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