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________________ ___७८६] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्र: पर्व २. सर्ग ६. अनेक तरहसे उसका पूजा उपचार किया। प्रसन्न होकर नागकुमारोंके स्वामीने पूछा, "मैं तुम्हारा क्या उपकार करूँ ?" तब मेघके समान गंभीर वाणीवाला भगीरथ ज्वलनप्रम इंद्रसे कहने लगा, "यह गंगानदी श्रष्टापदकी लाईको पूरकर अब भूस्वी नागिनकी तरह बेरोक चारों तरफ फैल रही है, मकानोंको उखाड़ रही है, वृक्षोंको श्वंस कर रही है,सभी खड़ा और टेकरियोंको समान बना रही है, किलोंको तोड़ रही है, महलोंको गिरा रही है, हवेलियोंको गिरा रही है और मकानोंको बरबाद कर रही है। पिशाचिनीकी तरह उन्मत्त होकर देशका नाश करनेवाली इस गंगाको, दंडरनके द्वारा खींचकर, यदि आप आना दे तो, मैं पूर्व समुद्रमें मिला दूं।" (५५८-५६७ ) - प्रसन्न हुप चलनप्रमने कहा, "तुम अपनी इच्छानुसार काम करो और वह निर्विघ्न पूरा हो । तुम मेरी आज्ञासे काम करोगे इसलिए इस मरतक्षेत्रमें रहनेवाले मेरंआज्ञापालक साँपोंसे तुमको कोई तकलीफ न होगी। यों कहकर नागेंद्र रसातलमें अपने स्थानपर चला गया। फिर भगीरथने अष्टम भक्तके अंतमें। पारणा क्रिया । (५६८-५७०) उसके बाद वैरिणीकी तरह पृथ्वीको भेदनेवाली और' स्वैरिणीकी तरह स्वच्छंदतापूर्वक विचरण करनेवाली गंगाको । त्रींचने के लिए भगीरथने दंडरत्न ग्रहण किया। प्रचंड मुनवलवाले भगीरथने गर्जना करती हुई उस नदीको, जैसे संदसीसे माला खींची जाती है वैसेही, दंडरत्नसे स्त्रींचा । फिर कुरुदेशके मध्यभागमें, इस्तिनापुरके दक्षिणम, कौशलदेशके पश्चिममें, प्रयागके उत्तरम, काशीके दक्षिणमें, विध्याचलके दक्षिणमें और
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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