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________________ ...., श्री अजितनाथ-चरित्र . [७८५ - कारक नहीं है; परंतु पित्त प्रकृतिवालेके लिए आतपका उपचार करना दोषकारक है । ऋषभस्वामीके पुत्र भरत चक्रीने योग्य उपचारसे देवों और दैत्योंको वशमें किया था। वे शक्तिवान थे तो भी उन्होंने देवादिकमें करने योग्य उपचार बताया है । इससे तुमको भी कुलाचारके.समान वर्ताव करना चाहिए।" . .. (५३३-५५४) ... महाभाग भगीरथने पितामहकी आज्ञा आदर सहित स्वीकार की। .:. "निसर्गेण विनीतस्य शिक्षा सद्भित्तिचित्रवत् ।" [जो स्वभावहीसे विनीत हैं उनको उपदेश देना अच्छी दीवारपर चित्र निकालने के समान है। ] फिर सगरने भगीरथको अपने प्रतापके समान सामर्थ्यवान दंडरत्न अर्पण कर, उसके मस्तकको (ललाटको) चूम, विदा किया। भगीरथ चक्रीके चरणकमलमें प्रणाम कर दंडरत्न सहित, बिजली सहित मेघ१ की तरह, वहाँसे रवाना हो गया। (५५५-५५७) । चक्रीकी दी हुई सेनासे और उस देशके लोगोंसे परिवा,रितभगीरथ,प्रकीर्ण देवताओं और सामानिक देवताओंसे परिपारित, इंद्र के समान शोभता था। क्रमशः वह अष्टापद पर्वतके निकट पहुँचा। वहाँ उसने उस पर्वतको, समुद्र द्वारा वेष्टित त्रिकूटाद्रिकी तरह, मंदाकिनीसे घिरा हुआ देखा विधिक जानकार भगीरथने ज्वलनप्रभके उद्देश्यसे अष्टम तप किया। अष्टम तपके समाप्त होनेपर नागकुमारोंका पति ज्वलनप्रभ प्रसन्न होकर भगीरथके पास आया। भगीरथने गंध, धूप और पुष्पों द्वारा
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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