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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र [७४४ इसी घरमें जन्मे थे, तो भी मरण-शरण हुए हैं। उनके बाद भी महान पराक्रमी असंख्य राना हुए हैं और वे सभी मरे हैं। कारण ..........."कालो हि दुरतिक्रमः।" [काल निश्चयही दुरतिक्रम है-अलंध्य है। ] हे ब्राह्मण ! मौत चुगलखोरकी तरह सबको हानि पहुँचानेवाली है, आगकी तरह सबको खानेवाली है व जलकी तरह सबको भेदनेवाली है। मेरे घरमें भी मेरे कोई भी पूर्वज मौतसे नहीं बचे, तब दूसरों के घरकी तो बात ही क्या है ? इससे देवीने कहा वैसा मंगलघर कहाँ मिलेगा ? इससे अगर तेरा एक पुत्र मरा है तो इसमें न कोई बात आश्चर्यकी है न अनुचित ही। हे ब्राह्मण ! जो मौत सबके लिए सामान्य है उसके लिए तू क्यों शोक करता है ? बालक हो, बूढ़ा हो, दरिद्र हो या चक्रवर्ती हो, मौत सबके लिए समान है। संसारका ऐसाही स्वभाव है कि • इसमें, नदीकी तरंगोंकी तरह, या शरदऋतुके बादलोंकी तरह, कोई चीज स्थिर नहीं रहती। फिर इस संसारमें माता, पिता, भाई, पुत्र, बहिन और पुत्रवधू वगैरा जो संबंध हैं वे पारमार्थिक नहीं हैं । गाँवकी धर्मशालामें जैसे मुसाफिर जुदी जुदी दिशाओंसे आकर एकत्र मिलते हैं वैसेही, कोई कहींसे और कोई कहींसे इस संसारमें आकर एक घरमें इकट्ठे होते हैं। उनमेंसे फिर सभी अपने अपने कर्मों के परिणामोंके अनुसार जुदा जुदा रस्तोंसे चले जाते हैं । इसके लिए कौन सुबुद्धि मनुष्य लेशमात्र भी शोक करता है? हे द्विजोत्तम ! इससे तुम मोहका मिह जो शोक है उसका त्याग करो, धीरज रखो भार ६
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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