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________________ ५८] त्रिषष्टि शनाफा घुमय-चग्निः पर्व २. सर्ग ६. - गए। इनके छोटे भाई श्रावली मी-जी भुजपराक्रमवामि स्वयंभूगमगा समुद्री नरह धुरीगा कहलात थे और दीक्षा ग्रहण करने के बाद (ध्यानमग्न होनेपर.) मैंग, हाथी और अष्टापद आदि पशुमानिनके शरीरमे अपना शरीर खुजात ना मी जो अपित वनरकी तरह एक वर्ष तक प्रतिमायारी रहे थे-पायु समान होनेपर एक नगा लिए भी अधिक न जी सके । मात चक्रवर्तीके पराक्रमी पुत्र श्रादित्ययशा हुए हैं। उनका पराक्रम श्रादित्य (सूर्यन ) क्रम नहीं था। उनके पुत्र महायशा हम उनका यशोगान दिगदिगाम होता था और व पराक्रमियाम शिरोमगि थे। उनका पुत्र अनिवल हुश्राः इंद्रकी तरह उसका शासन अायट पृथ्वीपर था। उसका पुत्र बलमद हुश्रा, वह अनम जगतको वश करनेवाला थोर ननसे सूर्य समान था। उसका पुत्र बलवीय हवा; बह महापराक्रमी, शौर्य व धेयपारियों में मुस्थ्य और राजाओं में श्रगुश्रा था। उसका पुत्र कीर्तिवीर्य था: बह कीर्ति और बीस प्रयान था; बह ऐसाही उज्ज्वल था जैप एक दीपक, दूसरा दीपक होता है। उसका पुत्र वनवीर्य हुश्राः यह साथियों में गंधहस्तिकी तरह और श्रायुधम बमडकी नाह मुन्थ्य एवं जिसमें पराक्रमको कोई रोक नहीं सकना या पराक्रमी था। उसका पुत्र इंडवीर्य हुश्रा बहमानो दुमरा यमराज हो या अड शक्तिवाला और सरह सुनदंडवाला था। समीदक्षिण भरता के स्वामी, महापामामी और ईदक द्वारा दिए गए भगवान मुटको घारगा बरनवान थे। इसी नरह अपने लोकोत्तर, पराक्रमसे थे देत्रों और भमुरीस भी न जीने जा सकते थे। भी देवयोगस
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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