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________________ :. : . श्री अजितनाथ-चरित्र [७१३ की, हाथियों के चिंघाड़नेकी, चारणोंके आशीर्वादोंकी और बाजों की आवाजें दिशाओंको बहरा बनाती हैं। इस तरह हमेशा एक एक योजना चलते. पारामसे मुसाफिरी करते. सगर राजा प्रिय पत्नीके पास जाते हैं वैसे, अयोध्या नगरीके पास श्रा पहुँचे । पराक्रमके पर्वत समान राजाने विनीता नगरीके निकट समुद्रके समान पड़ाव डाला । (२६८-३०२) एक दिन सभी कलाओंके भंडार सगर चक्री अश्वकीड़ाके लिए एक तूफानी और विपरीत शिक्षावाले घोड़ेपर चढ़े। वहाँ उत्तरोत्तर धारामें वे उस चतुर घोड़ेको फिराने लगे। क्रमशः उन्होंने घोड़ेको पाँचवीं धारामें फेरा, तब मानो भूत लगा हो ऐसे, लगाम वगैराकी कुछ परवाह न कर, घोड़ेने आकाशमें छलांग मारी। मानो अश्वरूपी राक्षस हो ऐसे, कालके वेगसे शीघ्र उड़कर वह सगर राजाको किसी बड़े जंगलमें ले गया। क्रोधसे लगाम खींचकर तथा अपनी राँगसे दबाकर चक्रीने घोड़ेको खड़ा किया और कूदकर वह उससे उतर पड़ा। थककर घबराया हुआ घोड़ा भी जमीनपर गिर पड़ा। चक्री वहाँसे पैदलही रवाना हुआ। थोड़ी दूर चलनेपर आगे उसे एक बड़ा सरोवर दिखाई दिया। वह सूर्यकिरणोंकी गरमीसे,,पृथ्वीपर गिरी हुई चंद्रिकाके समान मालूम होता था। सगर चक्रीने वनके हाथीकी. तरह, थकान मिटानेके लिए उस सरोवरमें स्नान किया और स्वादिष्ट, स्वच्छ और कमलकी सुगंधसे सुगंधित, शीतल जलका पान किया। वह सरोवरसे निकलकर किनारे बैठा तब जलदेवीके समान एक युवती उसे दिखाई दी। वह नवीन खिले हुए कमलके समान मुखवाली और नील
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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