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________________ ७१२ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्ष २. सर्ग ४. ही होती है। ] ( २८४-२८७) महाराजा सगर चक्रवर्ती चौदह रत्नोंके स्वामी थे, नौ निधियोंके ईश्वर थे, बत्तीस हजार राजा उनकी सेवा करते थे, बत्तीस हजार राजपुत्रियाँ और दूसरी बत्तीस हजार स्त्रियों-ऐसे कुल चौसठ हजार खियाँ-उनके अंतःपुरमें थीं ( यानी उनके चौसठ हजार पत्नियाँ थीं)। वे बत्तीस हजार देशोंके स्वामी थे, बहत्तर हजार बड़े बड़े नगरोंपर उनकी सत्ता थी, निन्यानवे हजार द्रोणमुखों के वे स्वामी थे, अड़तालीस हजार प्रत्तनों'. के वे अधिकारीथे, चौबीस हजार कर्वटों और मंडवोंके वे अधिपति थे; वे चौदह हजार संवाधकोंके स्वामी थे, सोलह हजार खेटकों के रक्षक थे, इक्कीस हजार आकरों५ के नियंता थे, उनचास कुराज्योंके नायक थे, छप्पन अंतरोदकों के पालक थे, छियानवे करोड़ गाँवोंके स्वामी थे, छियानवे करोड़ प्यादे, चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख घोड़े और चौरासी लाख रथोंसे पृथ्वीमंडलको आच्छादित करते थे। इस तरह महान ऋद्धियोंवाले चक्रवर्ती चक्ररत्नका अनुसरण करके, द्वीपांतरोंसे जहाज वापस आता है वैसेही, वापस लौटे। (२८८-२६७) ग्रामपति, दुर्गपाल और मंडलेश्वर मार्गमें उनकी दूजके चंद्रमाकी तरह, उचित भक्ति करते थे। बधाई देनेवाले पुरुषोंकी तरह, आकाशमें उड़ती हुई धूलि दूरहीसे उनके आनेकी सूचना देती थी। मानो स्पर्द्धासे फैलती हों ऐसे, घोड़ोंके हिनहिनाने. .१-चार सौ गांवोंके बीच में जो मुख्य ग्राम होता है उसे द्रोणमुख कहते हैं । २-कसबा । ३-आठ सौ ग्रामोंका मुख्य ग्राम । ४-खेडा । ५-खान । ६-द्वीप ।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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