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________________ ७१४] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्ष २. सर्ग ४. कमलके समान लोचनवाली थी। उसके शरीरपर सुंदरताका जल तरंगित हो रहा था, चक्रवाक पक्षीके जोड़ेके समान दो स्तनोंसे और फूले हुए स्वर्णकमलके जैसे हाथ-पैरोंसे वह बहुतही सुंदर मालूम होती थी। शरीरचारिणी सरोवरकी लक्ष्मीक समान उस बीको देखकर चक्री इस तरह विचार करने लगा-अहा ! क्या यह अप्सरा है ! व्यंतरी है ! नागकन्या है ! या विद्याधरी है ! कारण, सामान्य स्त्री इस तरहकी नहीं होती। अमृतकी वृष्टिके सहोदरके समान इसका दर्शन हृदयको जैसा आनंद देता है वैसा सरोवरका जल भी नहीं देता। (३०३-३१५-) उसी समय कमलपत्रके समान आँखोंवाली स्त्रीने भी, पूर्ण अनुरागके साथ, चक्रीको देखा । तत्काल (ही उसकी दशा) कुम्हलाई हुई कमलिनीके जैसी, कामदेवसे घबराई हुई सी हो गई। इससे उसकी सखियाँ, जैसे-तैसे उसे उसके निवासस्थानपर ले गई। सगर राजा भी कामातुर हो धीरे धीरे-सरोवर. के किनारेपर टहलने लगे। उस समय किसी कंचुकी' ने सगरके सामने आकर हाथ जोड़े और कहा, "हे स्वामी.! इस भरतक्षेत्रके वैताव्यपर्वतमें संपत्तियोंका प्रिय ऐसा गगनवल्लभ नामका नगर है। वहाँ सुलोचन नामका एक प्रसिद्ध विद्याधरपति था। वह ऐसे रहता था जैसे अलकापुरी में कुवेरका भंडारी रहता है। उसके एक सहस्रनयन नामका नीतिवान पुत्र है और विश्वकी स्त्रियोंमें शिरोमणि ऐसी एक सुकेशा नामकी कन्या है। वह जन्मी तब किसी ज्योतिपीने बताया था, कि यह लड़की चक्र १-अंत:पुरकी रक्षा करनेवाला । २–कुवेरकी नगरी।।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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