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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र [७०३ आते हुए सगर चक्रवर्तीको देखा। अपने अस्त्रोंके प्रकाशसे चक्री सूर्यके तिरस्कारका कारण बनायाः पृथ्वीकी रज खेचरकी स्त्रियोंकी दृष्टियोंको विशेष निमेष देता था, (यानी रजसे उनकी आँखें मुंद जाती थीं) अपनी सेना के भारसे पृथ्वीको कपाता था और उसके तुमुल शब्दसे स्वर्ग और पृथ्वीको बहरा बनाता था। वह असमयमें मानो परदेसे बाहर निकला हो, मानो आकाशसे नीचे उतरा हो, मानो पातालसे बाहर आया हो ऐसा मालूम होता था। वह अगणित सेनासे गहन और आगे चलते हुए चकसे भयंकर जान पड़ता था। ऐसे चक्रीको आते देखकर वे तत्कालही क्रोध व दिल्लगीके साथ आपसमें इस तरह वातचीत करने लगे। ( १६६-२००) "हे पराक्रमी पुरुषो! अप्रार्थितकी' प्रार्थना करनेवाला; लक्ष्मी, लज्जा, बुद्धि और कीर्तिसे वर्जितः सुलक्षण रहित अपने आत्माको वीर माननेवाला और अभिमानसे अंध बना हुआ यह कौन आया है ? अरे! यह कैसे अफसोसकी बात है, कि यह भैंसा केसरीसिके अधिष्ठित स्थानमें (यानी सिंहकी गुफामें) घुसता है!" ( २०१-२०२) फिर वे महा पराक्रमी म्लेच्छ राजा, इस तरहसे, चकवर्तीके अगले भागकी सेनाको सताने लगे, जिस तरह असुर इंद्रको . सताते हैं। थोड़ीही देरमें सेनाके अगले भागके हाथी भाग गए, घोड़े नष्ट हो गए, रथों की धुरियाँ टूट गई और सारीसेना परा वर्तनभावको प्राप्त हुई ( अर्थात छिन्न भिन्न हो गई)। भील ___ लोगोंके द्वारा सेना नष्ट की गई है यह बात जानकर चकवर्तीका -~जिसके पानेकी कोई प्रार्थना नर्दी करता, यानी मौत। -
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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