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________________ ७.२ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व २. सर्ग ४. हो वैसे, गुफाके पास पहुँचा। उसने हस्तिरत्नके दाहिने कुंभस्थलपर, दीवटपर दीपककी तरह, प्रकाशमान मणिरत्न रखा। फिर अस्खलित गतिवाले केसरीसिंहकी तरह, चक्रवर्तीने चक्रके पीछे पचास योजन विस्तारवाली तमिस्रागुफामें प्रवेश किया और उस गुफाकी दोनों तरफकी दीवारोंपर, गोमूत्रिकाके आकारके पाँच सौ धनुप विस्तारवाले और अंधकारका नाश करनेवाले कांकणीरत्नके उनचास मंडल. एक एक योजनके अंतरसे वनाए । [खुला हुआगुफाका द्वार और कांकणीरत्नके बने हुए मंडल जब तक चक्री जीवित रहता है तबतक वैसेही रहते हैं। वे मंडल मानुपोत्तरके चारों तरफकी चाँद सूरजकी श्रेणीका अनुसरण करनेवाले थे, इसलिए उनसे सारी गुफामें प्रकाश हो रहा था। फिर चक्री गुफाकी पूर्व दिशाकी दीवारसे निकलकर पश्चिम दीवारके मध्यमें जाती हुई उन्मग्ना और निमग्ना नामकी, समुद्रमें जानेवाली दो नदियोंके पास आया। उन्मग्ना नदी में डाली हुई शिला भी तैरती है और निमग्ना नामकी नदी में डाली हुई तूंवी भी डूब जाती है। वर्द्धकीरत्नने तत्कालही उनपर एक पुल बनाया और चक्रवर्ती सारी सेना सहित, घरके एक जलप्रवाहकी तरह उन नदियोंको पार कर गया। क्रमशः वह तमिन्नाके उत्तर द्वारपर पहुँचा; इसके द्वार तत्कालही अपने आप कमल के कोशकी तरह खुल गए। हाथीपर बैठा हुआ चक्रवर्ती, सूर्य जैसे वादलोंमेंसे निकलता है वैसे, सपरिवार गुफासे बाहर निकला । (१७७-१६५) दुखकारक है पतन जिनका ऐसे और भुसबलके मदसे . उद्धत बने हुए आपात जातिके भील लोगोंने सागरकी तरह
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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