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________________ ___७०४ त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व २. सर्ग ४. सेनापति, गुस्सा होकर सूर्यकी तरह, अश्वरत्नपर सवार हुआ और वह महापराक्रमी सेनापति नए उगे हुए घूमकेतुके जैसे खगरत्नको खींचकर, हरेक न्लेच्छपर आक्रमण करने लगा। जैसे हाथी वृक्षोंका नाश करता है वैसेही, उसने कइयोंको नष्ट कर दिया, कइयोंको मल दिया और कइयोंको भूमिपर सुला दिया । (२०३-२०७) सेनापतिके द्वारा खदेड़े हुए किरात कमजोर होकर, पवनके द्वारा उड़ाई हुई लईकी तरह, बहुत योजन तक भाग गए। वे दूर सिंधु नदी के किनारे इकट्ठे हुए और रेतीके विस्तार बनाकर वलहीन वहाँ बैठे। उन्होंने अत्यंत नाराज होकर अपने कुल. देवता मेघकुमार और नागकुमारके उद्देश्यसे अष्टम भक्त तप किया। तपके अंतमें उन देवताओंके आसन काँपे। उन्होंने अवधिज्ञानसे, सामने देखते हैं ऐसे, किरात लोगोंकी दुर्दशा देखी । कृपासे पिताकी तरह उनकी दुर्दशासे दुःखी होकर मेघकुमारदेव उनके पास आए और आकाशमें रहकर कहने लगे, हे वत्सो! तुम किस हेतुसे इस हालतमे हो ? हमें यह बात तत्काल बताओ, जिससे हम उसका प्रतिकार करें। (२०८-२१३) किरातोंने कहा, "हमारा देश ऐसा है जिसमें कोईआदमी. बहुत कठिनवासे प्रवेश कर सकता है, उसीमें किसीने, समुद्रम वडवानलीकी तरह प्रवेश किया है। उससे हारकर हम आपकी शरणमें आए हैं। आप ऐसा कीजिए, जिससे जो पाया है वह वापस चला जाए और फिर कभी लौटकर न आए।" - देवना बोले, "जैसे पतिंगा अग्निको नहीं जानता वेसेही,
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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