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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र [५२१ ताल, हिंताल और चंदन के वृत्तोंसे मानो सूर्यकिरणोंके त्राससे अंधकारने उसका आश्रय लिया हो ऐसा मालूम होता था। श्राम, चमेली, नागकेसर और केशरके वृक्षोंसे सुगंध-लक्ष्मीके एकछत्र राज्यका वह विस्तार करता हो; तांबूल, चिरोंजी और द्राक्षकी चेलों के प्रति विस्तारसे वह तरुण पथिकोंके लिए वगैर. ही यत्नके रतिमंडपोंका विस्तार करता हो; और मेरुपर्वतकी तलहटीसे मानो भद्रशाल वन यहाँ आया हो ऐसा उस समय वह वन अत्यंत सुंदर मालूम होता था। (६७-१०६) बहुत समय के बाद जब में सेना सहित दिग्विजय फरके लौटकर उस बगीचे के पास पाया और कौतुकके साथ वाहनसे उतरकर उस बगीचे के अंदर सपरिवार गया तब उस बगीचेको मैंने अलगही रूपमें देया । मैं सोचने लगा, क्याम भ्रमसे दूसरे बगीचे में प्रागया हूँ ? या यह बगीचा विलकुलही बदल गया है ? यह इंद्रजाल तो नहीं है ? कहाँ सूर्यकी किरणोंको रोकने. वाली वह पत्रलता और कहाँ तापकी यह एकछत्ररूप अपत्रता (पत्तोंका अभाव ) ? कहाँ युजोंके अंदर विश्राम करनेवाली रमणियों की रमणीयता और गहों निद्रित पड़े हुए अजगरोंकी दारुणता ? कहाँ मोरों और कोकिलाओंका वा मधुर पालाप और कहाँ चपल कीयोंके कर्णकटु शब्दोंसे बड़ी हुई व्याकुलता? कहा वह लये लटकते और भीगे हुए बल्लल बोकी सरनता और माहाँ इन मूखी हुई शान्याओंपर लटकने हुए मुजंग? फड़ो सुगंधित पुष्पोंमें बनाई हुई ये विशाग और कारी चिड़ियां, कोए, कपोत प्रादि पतियोंकी पीटसे दुगंधमय पना दुमा यह स्थान ? को पुष्परसके मरनीले हितकार कोई
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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