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________________ भ० ऋषभनाथका वृत्तांत [४६६ - - - - - मातारूपी मेघमालामें मोतीरूप हे सुमतिनाथ ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। ६-धर राजारूपी समुद्रके लिए चंद्रमाके समान और सुसीमादेवीरूपी गंगा नदीमें कमलके समान हे पद्मप्रभो! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। ७-श्रीप्रतिष्ठ राजाके कुलरूपी घरके प्रतिष्ठास्तंभरूप और पृथ्वी मातारूपी मलयाचलमें चंदनके समान हे सुपार्श्वनाथ ! मेरी रक्षा कीजिए। -महसेन राजाके वंशरूपी आकाशमें चंद्रमाके समान और लक्ष्मादेवीकी कोखरूपी सरोवरमें हंसके समान हे चंद्रप्रभो! आप हमारी रक्षा कीजिए। -सुग्रीव राजाके पुत्र और श्रीरामादेवीरूप नंदनयनकी भूमिमें कल्पवृक्षरूप हे सुविधिनाथ ! हमारा कल्याण शीघ्र कीजिए। १०-दृढरथ राजाके पुत्र, नंदादेवीके हृदयफे आनंदरूप और जगतको अह्लादित करने में चंद्रमाके समान हे शीतलत्वामी! आप हमारे लिए आनंददायी हजिए। ११-श्रीविष्णुदेवीके पुत्र, विष्णु राजाके वंशमें मोतीके समान और मोक्षरूपी लक्ष्मीके भार हे श्रेयांसप्रभो! आप हमारे कल्याणका कारण बनिए । १२-वसुपूज्य राजाके पुत्र, जयादेवी रूपी विदुर पर्वतकी भूमिमें रत्नरूप और जगतके लिए पूज्य हे वासुपूज्य ! प्राप मोक्षलक्ष्मी दीजिए। - -
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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