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________________ भ० ऋषभनाथका वृत्तांत [४] - - "हे प्रभो! अब हमारे धर्मसंशयोंको कौन मिटाएगा ?" कई "हम अंधोंकी तरह अब कहाँजाएँगे ?" कहकर पश्चात्ताप करते थे। और कई कहते थे, "हे पृथ्वी ! हमें मार्ग बता। हम तुझमें समा जाएँ।" ( ५२२-५४४ ) इस तरह व्यवहार करते और बाजे बजाते हुए देवता व इंद्र शिविकाओंको चिताओंके पास लाए। वहाँ कृतज्ञ इंद्रने, पुत्र जैसे पिताके शरीरको रखता है वैसे, प्रभुके शरीरको धीरे धीरे पूर्व दिशाकी चितापर रखा; दूसरे देवताओंने, सहोदरकी तरह इक्ष्वाकु कुलके मुनियोंके शरीरोंको दक्षिण दिशाकी चितापर रखा और योग्य बात जाननेवाले दूसरे देवताओंने, अन्य मुनियों के शरीरोंको पश्चिम दिशाकी चितामें रखा। फिर इंद्रकी आज्ञासे अग्निकुमार देवोंने उन चिताओंमें आग लगाई और वायुकुमार देवोंने हवा चलाई। इससे चारों तरफसे आग उठी और (चिताएँ) जलने लगीं। देव चिताओंमें घड़े भर भरके घी, शहद और कपूर डालने लगे। जव अस्थियोंके सिवा बाकी सभी धातु जल गई तब मेघकुमार देवोंने, क्षीरसमुद्रके जलसे चिताकी आगको ठंडा किया। सौधर्मेद्रने अपने विमानमें प्रतिमाकी तरह पूजा करने के लिए प्रभुकी ऊपरकी दाहिनी डाढ़ ग्रहण की, ईशानेंद्रने प्रभुकी अपरकी वाई डाढ़ ग्रहण की; चमरेंद्रने निचली दाहिनी डाढ़ ली और बलींद्रने नीचेकी बाई डाढ़ ली; दूसरे इंद्राने प्रभुके दूसरे दौत ग्रहण किए और अन्य देवाने प्रभुकी अस्थियां लीं। उस समय जो श्रावक आग माँगते थे उनको देवताओंने तीन कुंडोंकी आग दी। उस आगको लेनेवाले (श्रावक) अग्निहोत्र ब्राह्मण हुए। वे अपने घर जाफर
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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