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________________ 27 ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सग६. . . परमेश्वरके शरीरको ढका और दिव्य माणिक्यके श्राभूषणोंसे देवाग्रणी इंद्रन र चारों तरफसे विभूषित किया। दूसरे देवताऑने, दूसर मुनियों के शरीरोंकी इंद्रकी तरहट्ठी भक्तिसे स्ना. नादिक सभी क्रियाएं की। फिर देवनाओंने मानो अलग अलग लाग ड्रॉ ऐसे नीन जगन के सार-सार रत्नांस, हजार पुरुष उठाकर ले जा सकेंपली, नीन शिविकार तैयार की। इंद्रने प्रमुके चरणों में प्रणाम कर, स्वामीके शरीरको मस्तकपर उठा शिविकामें रग्बा । दुलर देवताओंन दुसरी शिविकाम, मोक्षमार्गके अनिथिल्प, इन्वानुवंशकं मुनियोंको, मन्तकपर उठाकर रखा और अन्य ममी साधुग्रांक शरीगेको तीसरी शिविकामे रखा। प्रभुकं शरीरवानी शिविकाको इंद्रने खुद उठाया और दूसरी शिविकायाको देवनायान उठाया। उस समय अप्सराएं, एक तरफ नालक नाथ राम कर रही थी और दूसरी तरफ मधुर न्वर गान कर रही थी। शिविकायां आगे देव, धूपदानियाँ लेकर चल रहे थे। पदानियां एक वदान प्रानो वे गेने होंगेल मालन होत थे। कई देवता शिविकाओंए: फूल डालने थे और कई प्रसादकी तरह उन फूलांको ले लेते थे। कई भागका तरफ देवदृष्य नोरण वनात थे और कई यनकर्दमसे आगे भाग छिड़काव करत जान थे। कई गोफनसे फेंके हुए पत्थरकी नगढ़ शिविक्राकं आग लोटने थे और कई मानो मोहचूर्णसे मारे गए वो ऐसे पीछ दौड़त थे। कई "ह नाय ! ई नाथ !" गले शब्द पुकारते थे और कई "अर! हम अमागे मार गए।" पसा कहकर अात्मनिंदा करते थे। कई याचना करते थे, "हे नाथ ! हमें शिक्षा दीजिए।" और कई ऋहत थे,
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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