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________________ 225 ] त्रिपष्टि शलाका पुरुष- चरित्र: पर्व ९. सर्ग . छोड़ने ? मैं उन्हीं पिताका पुत्र हूँ तो भी बहुत समय बाद मैंने इसको पहचाना है, तब दूसरा कौन इसे ऐसे रूपमें जान सकना है ? इसलिए यह राज्य सर्वथा त्याग करने लायकही हैं।" ऐसा विचार कर बड़े दिवाने बाहुने चक्रवर्तीसे कहा, " जमानाय ! हे भाई ! केवल राज्यके लिए मैंने शत्रु की तरह आपको सताया जमा कीजिए। इस संसाररूपी बड़े सरोवर सेवात्तचे तंतुओं के पाशकी तरह भाई, पुत्र और दि तयैव राज्यसे मुझे कोई मनन्त नहीं है। मैं तीन जगत के स्वामी और जान देने वाले पिताजी नागपांथ (साफिर की तरह चलूँगा । ( ७२५-७३६) यों कहकर साहसी पुनर्योनिं श्रमणी महा सत्यवान्ते बहुतीने हुई ही अपने मन केशोंका लोच कर डाला। उस समय देवताओंने 'साधु ! साधु ।" कहकर उसपर फूल बरसाए। फिर पांच महाव्रत धारण कर वे सनमें सोचने "मैं भी पिताजी नहीं जाऊँगा । कारण यदि मैं इस समय जाऊँगा तो मेरे छोटे भाइयोंमें, जिन्होंन सुमसे पहले लिया है और जो ज्ञानी है, मैं लघु माना जाऊँगा, इसलिए भी मैं यहीं रहकर ज्ञानरूपी अग्नि जलाऊँगा और जवानी कमका नाश कर केवलज्ञान प्राप्त करूंगा तब स्वामीकी पर्याने जाऊँगा ।" हाथ इस तरहका निश्रय का मनस्वी बाहुबली अपने दोनों करना की तरह वहीं कायोत्सर्ग करके रहे । अपने भाइकी इस स्थितिको देख भरत राजा नेमका विचार कर मानों पृथ्वीमेंस जाना चाहता हो इस तरह सर
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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