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________________ भरत-बाहुवलीफा वृत्तांत [४२७ - पक्षी जैसे घोंसलेमें आता है और अश्व जैसे घुड़सालमें आता · है वैसेही चक्र लौटकर भरतके हाथमें आगया। (७१७-७२४) ... "मारनेकी क्रियामें विषधारी सर्पके विषयके समान अमोघ अस्त्र एक चक्रही भरतके पास था। अब इसके समान दूसरा कोई अस्त्र भरतके पास नहीं है, इसलिए चक्र चला कर अन्याय करनेवाले इस भरतको तथा इसके चक्रको मुष्टिप्रहार कर कुचल डालूँ।" इस तरह गुस्सेसे सोचते हुए सुनंदाके पुत्र बाहुबली यमराजकी तरह भयंकर मुट्ठी ऊँची कर चक्रीकी तरफ दौड़े। सूंडमें मुद्गरवाले हाथीकी तरह मुक्केवाले करसे दौड़ते हुए बाहुवली भरतके पास पहुँचे; मगर समुद्र जैसे मर्यादाभूमिमें रहता है ऐसेही, वे महासत्व (महान शक्तिशाली) कुछ कदम पर खड़े रह गए और सोचने लगे, "अहो ! इस चक्रवर्तीकी तरह मैं भी राज्यका लोभी होकर अपने बड़े भाईका वध करनेको तैयार हुआ हूँ, इसलिए मैं शिकारीसे भी विशेष पापी हूँ। जिसमें पहले भाई-भतीजोंको मार डालना पड़े, ऐसे शाकिनीमंत्रीकी तरह राज्यके लिए कौन कोशिश करे ? राजाको राज्यश्री मिलती है। इच्छाके अनुसार उसका उपभोग करता है तो भी, जैसे शराबीको कभी शराबसे संतोष नहीं होता, उसी तरह राजाओंको (प्राप्त) राज्यलक्ष्मीसे संतोप नहीं होता। आराधना पूजा करते हुए भी छोटासा छिद्र देखकर ही, दुष्ट देवताकी तरह राज्यलक्ष्मी क्षणभरमें मुँह मोड़ लेती है। अमावसकी रातकी तरह वह गाढ़ अंधकारवाली है। (इसीलिए पिताजीने इसका त्याग किया है। ) अगर ऐसा न होता तो पिताजी इसको क्यों
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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